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.१०२] भगवान पार्श्वनाथ । 'उत्तरपुराण' में राजा दशरथके पुत्र रामचंद्रके विषयमें कहा गया हैं कि वे काशीमें राजा दशरथकी आज्ञा लेकर राज्य करने लगे थे।' संभव है, इन्हींको लक्ष्यकर बौद्धोंने उक्त कथा रची हो !
बौद्धोंकी जातक कथाओंमें एक राजा ब्रह्मदत्तका विशेष वर्णन मिलता है और उनकी राजधानी वहां बनारस बताई गई है, जैसे कि “गलाई जातक' में उल्लेख है। इसमें बनारसके राजा ब्रह्मदत्त बतलाये हैं और बोधिसत्त (बुद्धका पूर्वभवी जीव) तक्षशिलाके राजा कहे बाये हैं । इनका आपसमें युद्ध होते २ बच गया था; किन्तु * कोसियजातक' में बनारसके राजा तो ब्रह्मदत्त ही बताये हैं, पर बोधिसत्तको एक ब्राह्मण पुत्र बतलाया है, जो तक्षशिलासे वेदादि पढ़कर बनारसमें एक प्रख्यात् पंडित होगया था। इसके साथ ही 'दुम्मेधजातक' में स्वयं बनारसके राजा ब्रह्मदत्तकी पट्टरानीके गर्भसे बोधिसत्तका जन्म होना लिखा है और उनका नाम ब्रह्मदत्तकुमार बतलाया है। फिर 'असदिस जातक में बोधिसत्तको बनारसके राजा असदिसका पुत्र बतलाया गया है और इनके भाई ब्रह्मदत्त कहे. गये हैं। इन विभिन्न कथनोंको देखते हुये स्पष्टतः नहीं कहा जासक्ता है कि किन राना ब्रह्मदत्तका उल्लेख किया जारहा है और क्या सचमुच उनकी राजधानी बनारस ही थी ? जैनशास्त्रोंमें 'ब्रह्मदत्त' नामक अंतिम चक्रवर्ती सम्राट् भगवान पार्श्वनाथसे किञ्चित् पहले हुये बतलाये गये हैं; तथापि वह कंपिलके राजा ब्रह्मके पुत्र
१-उत्तरपुराण पृ० ३६९ । २-फॉसबैल, जातक, भाग २ पृ. २१७-२१८ । ३-पूर्व० भाग १ पृ० ४६३ । ४-पूर्व० भाग १ पृ० २८५ । ५-पूर्व भाग २ पृ० ८७ ।