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भगवानका शुभ अवतार !
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श्रीजिनेन्द्र भगवानको गर्भमें धारण किया था । नक्षत्र भी विमल विशाखा नक्षत्र था। जैनाचार्य इस शुभ घटनाका उल्लेख यूं करते हैं-'अथ दिविजवधू पवित्रकोष्ठं जठरनिवासमुपेतमनितेंद्रम् ।
अवहद दयिता नृलोकभर्तुः खनिरिव सारमणि निगूढकांतिम् ॥'
: अर्थात् - ' जिसप्रकार छिपी हुई कांतिको धारण करनेवाली उत्कृष्ट मणिको, खानि अपने उदर में धारण करती है, उसी प्रकार मनुष्य लोकके स्वामी राजा विश्वसेनकी प्रियतमाने आनत स्वर्गसे आये हुए भगवान पार्श्वनाथके जीव आनतेन्द्रको छप्पन दिक्कुमा.रियों द्वारा शुद्ध किये गये अपने उदर में धारण किया । ' ( पार्श्वचरित ४ ३४९ ) ।
इसप्रकार भगवान पार्श्वनाथ आनत स्वर्गसे चयकर महाराणी ब्रह्मदत्त के गर्भ में आगये । उनके गर्भमें आने से वह महाराणी उसी तरह विशेष शोभित होने लगीं जिस तरह पूर्व दिशा प्रतापी • सूर्यके उदय होनेसे मनोहर बन जाती है। भगवान के गर्भावतारका • उत्सव भी विशेष सजधजके साथ मनाया गया था । देवलोकके इन्द्र और देवगण बनारस में आये थे और उन्होंने जिनेन्द्रका 'गर्भ: कल्याणक महोत्सव किया था, यह जैनशास्त्र प्रकट करते हैं ।
. महाराणी ब्रह्मदत्ता वैसे ही विशेष गुणवती और विद्वान थीं, परन्तु भगवानको गर्भमें धारण करनेपर उनने स्त्रियोंके स्वभावोचित सब ही गुणों को सहज ही अपने में उदय कर लिया । भगवानका ऐसा दिव्य प्रभाव था कि गर्भके बढ़ते जानेपर भी महाराणी ब्रह्मदत्ताका उदर नहीं बढ़ा था। भगवान उनके गर्भ में उसी तरह विराजमान थे, जिसतरह सरोवर में कमल कीचड़से अलग रहता है ।
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