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तत्कालीन धार्मिक परिस्थिति । [ ८९
जब इनकी कामधेनु गाय जमदग्निको मारकर छीन ली थी तब इन्होंने क्षत्री वंशको नष्ट करनेका प्रयत्न किया था । शांडिल्य ऋषिने सहस्रबाहुकी एक रानी चित्रमतीको सुबन्धु नामक निर्ग्रन्थ मुनिके पास रख दिया था, जिसके गर्भ से सुभौम चक्रवर्तीका जन्म हुआ था । इन्हीं सुभौमने अपने वंशके वैरी परशुराम - जमदग्निके दोनों पुत्रोंको नष्ट किया था ।' भगवान मुनिसुव्रतनाथके तीर्थ में ही रामचन्द्र आदि हुये थे और फिलासफरोंके आश्रयदाता जनक भी इस काल में मौजूद थे | जनकने पशु यज्ञका विचार किया था, परन्तु वह विद्याधरों, जिनमें रावण मुख्य था, से भयभीत थे जो पशु यज्ञके खिलाफ और सम्यग्दृष्टी थे । जनकके मंत्री अतिशय- मतिने इसका विरोध भी किया था । अन्ततः राम-लक्ष्मणकी मदद राजा जनकने ली थी । उपरान्त गौतम, जठरकौशिक, पिप्प·लाद आदिका भी उल्लेख इस पुराण में है । इस तरह जैन शास्त्रोंसे भी वैदिक धर्मके विकाशक्रमका पता चल जाता है ।
अतएव यहांतक के इस सब वर्णनसे हम भगवान पार्श्वनाथ - जीके जन्मकाल के समय जो धार्मिक वातावरण इस भारतवर्ष में हो - रहा था उसके खासे दर्शन पा लेते हैं । देख लेते हैं कि ब्राह्मणऋषियोंकी प्रधानता से पशुयज्ञ, हठयोग और गृहस्थ दशामय साधु जीवन बहु प्रचलित थे । ब्रह्मचर्य का प्रायः अभाव था । तथापि देवताओंकी पूजा और पुरखाओंकी रीतियोंके पालन करनेके भावसे देवमूढ़ता और तीर्थ मृढ़ता आदि भी फैल रहे थे । वातावरण ऐसा दूषित होगया था कि प्राकृत उसको सुधारने की आवश्यक्ता
१ - पूर्व० पृ० २९२ - ३०० । २ - पूर्व ०१ १० - ३४०-३६४ ।