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भगवान पार्श्वनाथ |
आप्त हुई और उन दूसरी स्त्रियोंके उदाहरण में टीकाकार कुल्लूकमट्टजीने 'अन्याश्च सत्यवत्यादयो' इत्यादि रूपसे सत्यवतीके नामका उल्लेख किया है। यह सत्यवती हिन्दू शास्त्रोंके अनुसार एक धींवरकीकैवर्त्य अथवा अन्त्यजकी कन्या थी। इसकी कुमारावस्था में पाराशर ऋषिने इससे भोग किया और उससे व्यासजी उत्पन्न हुए जो कानीन कहलाते हैं । बादको यह भीष्मके पिता राजा शान्तनुसे व्याही गई और इस विवाइसे विचित्रवीर्य नामका पुत्र उत्पन्न हुआ जिसे राज
मिली और जिसका विवाह राजा काशीराजकी पुत्रियोंसे हुआ । विचित्रवीर्य के मरनेपर उसकी विधवा स्त्रियोंसे व्यासजीने अपनी माता सत्यवतीकी अनुमति से भोग किया और पाण्डु तथा धृतराष्ट्र ग्रामके पुत्र पैदा किये जिनसे पाण्डवों आदिकी उत्पत्ति हुई । ..... एक और नमूना 'ययातिराजाका उशना ब्राह्मण ( शुक्राचार्य ) की 'देवयानी' कन्या से विवाहका भी है । यथा:
तेषां ययातिः पंचानां विजित्य वसुधामिमां । देवयानि मुशनसः सुतां भार्यामवाप सः ॥
महाभा० हरि० अ० ३० वां । "इसी विवाहसे ' यदु' पुत्रका होना भी माना गया है, जिससे यदुवंश चली ।" इन तरह पर हिन्दू शास्त्रों में हीन जातियों और शूद्रा स्त्रियों तकसे विवाह संबन्ध करनेके अनेकों उदाहरण मिलते हैं; जो हमारे उपरोक्त कथनको स्पष्ट कर देते हैं । साथ ही जैनशास्त्रों में भी विवाह क्षेत्रकी विशालता बतानेवाले अनेकों उदाहरण मिलते हैं। यहां हम उनमें से केवल उनका ही उल्लेख करेंगे जो भग१. विवाहक्षेत्र प्रकाशसे ।