________________
७२] भगवान पार्श्वनाथ । हमें यथार्थताको लिए हुए प्रकट होती है । जब हम देखते हैं कि भगवान महावीर अथवा म • बुद्धके जन्मकालमें बहुतसे यक्षमंदिर आदि मौजूद थे । वैशालीके आसपास ऐसे कितने ही चैत्यमंदिर थे । यह चैत्य चापाल, सप्ताम्रक, बहुपुत्र, गौतम, कपिना, मर्कटहृदतीर आदि नामसे विख्यात थे।' बौद्ध लेखक बुद्धघोष अपनी 'महापरिनिब्बाण सुत्तन्तकी टीकामें 'चैत्यानि’ को ‘यक्षचैत्यानि' रूपमें बतलाते हैं । और 'सारन्ददचैत्य'के विषयमें कहते हैं, जहां कि बुद्धने धर्मोपदेश दिया था, कि 'यह वह विहार था जो यक्ष सारन्दरके पुराने मंदिरके उजड़े स्थानएर बनाया गया था। इसतरह उस समय यक्षादिकी पूनाका प्रचलित होना भी स्पष्ट व्यक्त है । लिच्छवि क्षत्रिय राजकुमारोंके इनकी मान्यता थी, यह भी प्रकट है। अब रही वात हेतुवादसे आप्तकी सिद्धि करनेकी. सो यह भी बौद्ध शास्त्रोंसे प्रमाणित है कि उस समय ऐसे साधुलोग विद्यमान थे जो हेतुवादसे अपने मन्तव्योंकी सिद्धि करते थे और वर्षभर में अधिक दिन वाद करने में ही विताते थे। इसप्रकार उपरोल्लिखित जेन कथाद्वारा जो भगवान पार्श्वनाथके समयके धार्मिक वातावरणका परिचय हमें मिलता है, वह प्रायः ठीक हो विदित होता है और हमें उस समयकी धार्मिक परिस्थतिके करीब२ स्पष्ट दर्शन हो जाते हैं। इस धार्मिक स्थितिका दर्शन करते हुए आइए
१-डायलॉग्स ऑफ दी बुन्द्र भाग ३ पृ० १४ और दिव्यावदान् पृ० २०१ । २-पूर्व पुस्तक भाग २ पृ० ८० नोट-२-३ । ३-दी क्षत्रिय क्लेन्स इन बुद्धिस्ट इन्डिया पृ० ७९-८२ । ४-बुन्द्रिस्ट इन्डिया पृ० १४१- वितंडा, तर्क, न्याय, मीमांसा बताए हैं।