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भगवान पार्श्वनाथ । .
मत प्रचलित थे । एकका कहना था कि 'व्यक्ति' (Being) की उत्पत्ति 'अ-व्यक्ति' (Non-Being) मेंसे हुई है । दूसरा कहता था कि 'व्यक्ति' (Being) व्यक्तिमेंसे ही उत्पन्न होसक्ता है। इन दोनोंके बीचमें प्रनापतिने मध्यका मार्ग ग्रहण किया था, यह कहा गया । उनके निकट 'मुख्य वस्तु' का समावेश न व्यक्तिमें था 3777 77 Spoofitâ l (For him the original matter comes neither under the definition of Being nor that of non-Being.)२ प्रनापतिने समझानेके लिए पानी (स'लिल) को मुख्य माना था। उनका कहना था कि पानीसे ही सब वस्तुएं बनी हैं; सब सत्तात्मक वस्तुओंकी मूल द्रव्य पानी है । इसके अगाड़ी उन्होंने और कुछ न बतलाया और इसी अपेक्षा उनका मत संशयात्मक माना गया है। उनके निकट गहन-गंभीर पानी ही सब कुछ था और वह भी क्या था ? वह एक वस्तु थी जो स्वास रहित पर अपने ही स्वभावमें स्वासपूर्ण थी । ( आनीदवातं स्वधयातद एकम् , तम्माखान्यन् न परः किञ्चन नास ") वह अमूर्तिक भी थी । (ऋग्वेद १०।१२९,५) अंधकार (तमस) भी था और इस तमस-अंधकारमें पहले 'पानी' अपने अव्यक्तरूप (अप्रकेतम् ) में छुपा हुआ था । पानी ही वह था जो सत्तामें था। (सर्वम् इदं ।)" पानी यहांपर सिवाय आत्मद्रव्यके और कुछ न था। संसारमें आत्माको 'पानी' के नामसे संज्ञित करना ठीक भी है,
१-१ हिस्ट्री ऑफ प्री-बुद्ध इन्ड. फिला० पृष्ठ १२ । २-पूर्व प्रमाण । ३. पूर्व प्र० १२ ४. पूर्व प्र० १३-“ Water was that one thing, breathless, breathed by its own nature. ५-पूर्व पृठ १३।