________________
उस समयकी सुदशा ।
| ६१ दृष्टिसे जो यह हालत राज्यकीय क्षेत्र में मिलती है, वह अन्यथा भी सिद्ध है । प्राचीनतम भारतीय मान्यता इस पक्ष में है कि पहले एक व्यक्तिको जनता राजा के रूपमें चुन लेती थी और वह जनता के हित के लिये राज्य करता था । हिन्दुओंके महाभारतमें राजा वेण और थुकी कथासे यही प्रकट होता है ।' स्वयं ऋग्वेद में 'समिति' और 'परिषद' शब्दों का उल्लेख मिलता है; जिससे स्पष्ट है कि प्रजासत्तात्मक राज्यकी नींव वैदिककालमें ही पड़ चुकी थी । यद्यपि मानना पड़ता है कि उस समयकी प्रजा स्वाधीन राजाओंके ही आधीन थी। जाहिरा ऋग्वेदमें ऐसा कोई उल्लेख स्पष्ट रीतिसे नहीं है कि जिससे किसी अन्य प्रकारकी राज्य व्यवस्थाका अस्तित्त्व प्रमाणित होसके । ऋग्वेद में अनेक स्थलोंपर 'राजन' रूपमें एक नृपका उल्लेख मिलता है और यह राज्य प्रणाली अवश्य वंशपरम्परा में क्रमशः चली आ रही थी । राजा होता तबके राजाओं का मौरूसी हक था, किन्तु वह पूर्ण स्वाधीन भी नहीं थे कि मनमाने अत्याचार कर सकें, क्योंकि ऐसा करनेमें उनके मार्ग में समिति या सभाके सदस्य आड़े आते थे ।' इस कारण यह मानना ही पड़ता है कि प्रजासत्तात्मक राज्यके बीज भारतमें ऋग्वेद के जमाने से ही वो दिये गये थे । जैन शास्त्र भी सर्व प्रथम राजाओं का साधारण जनता में से चुना जाना ही बतलाते हैं । अतएव इसमें कोई आश्चर्य नहीं, यदि भगवान पार्श्वनाथजीके समय में भी दोनों तरहके राज्यों का अस्तित्त्व किसी न किसी रूप में मौजूद हो ।
3
१. महाभारत शांतिपर्व ६०/९४ । २. समक्षत्री ट्राइव्स ऑफ एन्शियेनृ इंडिया पृ० ९९ । ५. कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया भाग १ पृ० ९४ । ४. आदिपुराण अ० १६/२४१ - २७५ ।