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उस समग्रकी सुदशा ।
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वान पार्श्वनाथ के समय अथवा उनसे पहलेके हैं। पहले ही तेईसवें तीर्थंकर श्री नेमनाथजीके समय के वसुदेवनीको ले लीजिये । यह वसुदेवजी स्वयं क्षत्री थे, परन्तु इनने विश्वदेव नामक ब्राह्मणकी क्षत्रिय स्त्रीसे उत्पन्न सोमश्री नामक कन्यासे विवाह किया था । इसका उल्लेख श्री जिनसेनाचार्य प्रणित 'हरिवंश पुराण (२३वें सर्ग) में इन इलोकों में किया गया है:
"अन्वयेतत्तु जातेयं क्षत्रियायां सुकन्यका
सोमश्रीरिति विख्याता विश्वदेव द्विजः ॥ ४
कराल ब्रह्मदतेन मुनिना दिव्यचक्षुषा । वेदेजेतुः समादिष्टा महतः सहचारिणी
इति श्रुत्वा तदाधीत्य सर्वान्वेदान्यदूत्तमाः
जित्वा सोमश्रियं श्रीमानुपयेमे विधानतः ॥ ५१ ॥ " दूसरा उदाहरण श्रीकृष्णके भाई गजकुमारका है। श्रीकृष्णने इनका विवाह क्षत्रियराजाओंकी कन्याओंके अतिरिक्त सोमशर्मा ब्राह्मणकी पुत्री सोमासे भी किया था । इस घटना का उल्लेख श्री जिनसेनाचार्य और ब्रह्मचारी जिनदास दोनों के ही हरिवंशपुराण में मिलता है । ब्र० जिनदासजी के हरिवंशपुराणमें इस संबन्धका श्लोक यह है:
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मनोहरतरां कन्यां सोमशमाग्रजन्मः ।
सोमाख्यां वृत्तवांश्चक्री क्षत्रियाणां तथा परा ॥ ३४-२६॥” तीसरा उदाहरण ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीका है जो भगवान पार्श्वनाथके कुछ ही पहले हो गुमरे थे। इनकी छ्यानवे हजार रानि योंमेंसे अठारह हजार म्लेच्छकन्यायें भी थीं। प्रत्येक चक्रवर्तीक
१. केम्ब्रिज़ हिस्ट्र आफ इन्डिया भाग १ पृ० १८० ।