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भगवान पार्श्वनाथ |
क्रमकर ही पहुंची होगी। क्रांति एकदम उठ खड़ी नहीं होती । जब सामाजिक अत्याचार चर्मसीमाको पहुंच जाता है, तब ही वहां क्रांतियां प्रगट होने लगतीं हैं। म० बुद्धके समय में एक सामाजिक क्रांति ही उपस्थित थी । इसलिए भगवान् पार्श्वनाथ के समय में सामाजिक अत्याचारों की भरमार होना प्राकृत संगत है।
स्व०मि० ही सडेवेड्रिस सा०ने बौद्धकालीन सामाजिक व्यव - स्थापर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि " ऊपरके तीनवर्ण मूल में प्रायः एक हो रहे थे; क्योंकि विप्र और क्षत्रियपुत्र एक तरह से तीसरे वैश्य वर्ण में वह व्यक्ति थे जिन्होंने अपनेको सामाजिक वातावरण में उच्चपद पर पहुंचा दिया था । और यद्यपि जाहिरा यह कार्य कठिन था, तो भी यह संभव था कि ऐसे परिवर्तन होवें । साधारण स्थिति मनुष्य राजपुत्र बन जाते थे और दोनों ही ब्राह्मण हो जाते थे । ग्रंथों में इस प्रकारके अनेक उदाहरण मिलते हैं । सुतरां ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं- स्वयं विप्रोंके कियाकाण्डके ग्रंथोंमें- कि जिनमें हरप्रकारकी सामाजिक परिस्थतिके स्त्री पुरुषोंका परस्पर पाणिग्रहण हुआ हो । यह संबंध केवल उच्चवर्णी पुरुष और नीच कन्यायोंके ही नहीं है, बल्कि बिलकुल बरअक्स इसके अर्थात् नीच पुरुष और उच्चवर्णी स्त्रीके विवाह संबंधके भी हैं ।" "
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वास्तव में विवाह क्षेत्र भी उस समय इतना सीमित नहीं था जितना कि आज वह संकीर्ण बना लिया गया है । आज तो अपनी वैश्य जातिमें भी नहीं, बल्कि वैश्य जातिके भी नन्हें नन्हें टुकड़ों में ही वह बंद कर दिया गया है। आज यदि कोई जेनी अपने ही
१ - देखो बुद्धिस्ट इन्डिया पृष्ठ ५५ - ५९ ।