Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पानी समाप्त होने लगा, संग्रह किये हुए धान्यादि सब क्रमश: समाप्त हो गये, लोग दाना पानी के बिना भूखे मरने लगे, सर्वत्र हा हाकार मचा हुआ था, लोग भूख के कारण एक दूसरे को पेट फाड़कर उसके अन्दर का अन्न भी खाने लगे, बड़ी बिकट समस्या खड़ी हो गई, इस कारण उज्जैनी के अन्दर स्थित साधुओं की आहार चर्या में भी कठिनाई पड़ने लगी। चायें तरफ साधुओं को भूख भूख, मरे मरे, हा हा हु हु क्या करें, अरे मर गये रे ओ हमें खाना खिलाओ आदि के ही शब्द सुनाई देने लगे, बड़ा ही करुणा मई दृश्य उपस्थित हुआ, किन्तु साधुओं को तो श्रावक लोग धर्म के अनुसार आहारादि दे देते थे, एक दिन एक मुनिराज श्रावक के घर से आहार करके अपनी बस्ती की ओर वापिस लौट रहे थे, तब रास्ते पर बैठे हुए भूखे लोगों ने विचार किया कि हम तो भूखे हैं, और ये साधु पेट भरके भोजन खा कर आये हैं। तब एक भिखारी ने साधु को पकड़ लिया, और शस्त्र से उनका पेट फाड़ डाला और अन्दर से अन्न निकाल कर खा लिया। ऐसी का घर भित होते. परकों में वे साधुओं में हा-हाकार मच गया। लोग विचार करने लगे, अब क्या करें, कठिन समय
आ गया, अब साधुओं की चर्या कैसे पालन होगी, श्रावक वर्गों ने विचार कर साधुओं से प्रार्थना की कि हे! देव, अब इस विषम दुर्भिक्षकाल में साधुओं की निर्दोष चर्या पालन होना कठिन है, अब आप लोग दिन में आहार के लिये श्रावकों के घर पर न आकर रात्री में ही आहार के लिये आकर भोजन हमारे घर से ले जाइये और दिन में उस भोजन को कर लीजिये, क्या करें, ऐसा ही समय है, फिर प्रायश्चितादिक से शुद्धि कर लेना। तब साधुओं ने श्रावकों की बात पर व कठिन दुर्भिक्षकाल पर विचार कर रात्रि में श्रावकों के घर से भोजन कर अपनी बस्ती में खाना स्वीकार कर लिया, कुछ समय ऐसा चला, एक दिन एक मुनि रात्रि में आहार के लिये श्रावकों के घर पर घूम रहे थे, तब एक गर्भवती श्राविका मुनि को रात्रि में भयंकर वेष देखकर घबराई और भय के मारे उस महिला का गर्भ पतन हो गया। वह बहुत डर गई और यह नयी समस्या और खड़ी हो गई, फिर श्रावकों ने आकर मुनियों से प्रार्थना की कि हे महाराज अब इस विकटतम काल में यह निर्ग्रन्थ वेष पालन नहीं हो सकता. आप अब एक लंगोटी लगाकर आहार लेने को जाया करो, साधुओं ने मंजूर कर लिया और लंगोटी लगाकर आहार के लिये रात्रि में घूमने लगे। अब उन साधुओं को कुत्ते परेशान करने लगे, तब उन साधुओं ने हाथ में एक डंडा लेना स्वीकार किया, और डंडा लेकर नगर में घूमने लगे, इत्यादि दुर्भिक्ष के कारण अनेक प्रकार के साधु चर्या में महादोष