Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रस्तावना
करना चाहिये, वत्स मैं तुम्हारी माता से वचनबद्ध है, तुम्हारी माँ ने मेरे से वचन लिया था कि मेरे पुत्र को दीक्षा नहीं देंगे तब ही उन्होंने मेरे साथ में शिक्षा प्राप्त करने के लिये तुमको भेजा था, सो अब तुम पूर्ण ज्ञान विज्ञान से सहित हो गये हो अपने नगर में जाओ, माता पिता की आज्ञा प्राप्त करो, आज्ञा मिलने पर वापिस आओ, मैं तुम्हें अवश्य दीक्षा दूंगा, तुम्हारी विद्यापूर्ण हो चुकी। गुरु की आज्ञा प्राप्त करके कुमार भद्रबाहु अपनी नगरी की ओर लौट गये, जाकर माता पिता से मिले, माता पिता को कुमार भद्रबाहु के घर पर वापिस आने पर अत्यंत हर्ष हुआ, दोनों ही आशीर्वाद देने लगे, कुमार ने राज्य सभा में जाकर अपना पांडित्य दिखाया, सारे विद्वान उस पं. भद्रबाहु के सामने नतमस्तक हुए राजा भी बहुत प्रभावी हुआ, राजा को बहुत हर्ष हुआ, कुमार भद्रबाहु का वस्त्राभूषणों व रत्नादिक देकर सम्मान किया। कुमार ने अपने माता-पिता से अपने स्वयं के दीक्षा लेने के विचार को कहा समझाया, उनको सन्तोषित करने की कोशिश की, माता पिता को उदास देखकर उनको संसार के स्वरूप का ज्ञान कराया, माता पिता ने देखा की पुत्र संसार से पूर्ण वैरागी हुआ है, संसार में नहीं फंसेगा, तब बड़ी कठिनाई से भद्रबाहु कुमार की दीक्षा के लिये आज्ञा दे, दोनों ने आशीष दिया, आज्ञा प्राप्त होते ही कुमार बड़ा प्रसन्न हुआ, शुभमुहुर्त में माता पिता से आज्ञा लेकर गोवर्द्धनाचार्य गुरुदेव के पास वापस आ गये, भक्ती पूर्वक नमस्कार किया, दीक्षा की प्रार्थना की और एक दिन शुभ मुहुर्त में कुमार भद्रबाहु ने दीक्षा ले ली, अब मुनि भद्रबाहु हो गये, मुनि भद्रबाहु ज्ञान ध्यान तप में लीन रहते हुए गुरु की सेवा करने लगे, गुरु ने भी शिष्य भद्रबाहु मुनि को अपना पूर्णश्रुत द्वादशात्र ज्ञान को पढ़ा दिया, अब मुनिराज भद्रबाहु श्रुतकेवली रूप में दिखने लगे, कुछ ही समय के बाद गोवर्द्धनाचार्य अपना आचार्य पद भद्रबाहु मुनिराज को देकर समाधिस्थ हो गये, उसके बाद संघ नायक पंचम श्रुतकेवली भद्रबाहु के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध हुए, आप अष्टाङ्ग निमित्त ज्ञान के धारक थे। अष्टाङ्ग निमित्त ज्ञानों में, अंतरिक्ष, भूगोल, ज्योतिष, मंत्र सामुद्रिक, शकुनादिक आते हैं। आप अपने संघका कुशलतापूर्वक पालन करते थे, आप के हाथ के नीचे चौबीस हजार साधु रहते थे, आप की आज्ञा पालन करते थे, बृहत्संघ के नायक होकर आप भगवान महावीर की वाणी का सर्वत्र प्रचार करते थे, जीवों को आत्म कल्याण के मार्ग पर लगाते थे, शिक्षा दीक्षा देते थे, संग्रह व निग्रह करने में आप पूर्ण कुशल शिल्पी थे, बिहार करते करते एक दिन आप अपने संघ सहित उज्जैनी नगरी के उद्यान में आकर ठहर गये, एक दिन आप आहार के लिये नगर की ओर