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हुआ, यावत् हर्ष से प्रफुल्लित बना और मेघधारा से सिंचित कदंब पुष्प जिस प्रकार खिलता है, उस प्रकार उसके रोम रोम खड़े हो गये। फिर उसने उन स्वप्नों को यादकर, उनके फल के विषय में सोचने लगा, सोचकर उसने अपने
स्वाभाविक-सहज-मतियुक्त बुद्धि के विज्ञान से उन स्वप्नों के अर्थ निश्चित किये, मन से निश्चित कर वह ब्राह्मण *वहां अपने सामने बैठी हुई देवानंदा ब्राह्मणी को इस प्रकार कहने लगा।
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___८) “ हे देवानुप्रिये! तुमने उदार स्वप्न देखे है। कल्याणकारी, शिवरुप, धन्य, मंगलमय और शोभायुक्त स्वप्न देखे है, तुमने आरोग्य देने वाले, संतोषकारी, कल्याणकारी आयुष्य बढाने वाले और मंगल करने वाले स्वप्न देखे है। उन स्वप्नों का विशेष प्रकार का फल इस प्रकार से है। हे देवानुप्रिये! अर्थ की-लक्ष्मी की प्राप्ति होगी, हे देवानुप्रिये! भोग, पुत्र और सुख की प्राप्ति होगी और वास्तवमें इस प्रकार होगा कि हे देवानुप्रिये! तुम पूरे नव महीने साडेसात दिन बितने पर पुत्र को जन्म दोगी।
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