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प्रकार कदंब का पुष्प खिल जाता है- उसके कांटे खड़े हो जाते हैं उसकी भांति उसके रोम रोम खड़े हो गये। उसके बाद उसने अपने देखे हुए स्वप्नों को याद किये, स्वजों को याद कर वह अपनी शैय्या से खडी होकर धीरे धीरे अचल वेगरहीत राजहंस जैसी चाल से जहां रिषभदत्त ब्राह्मण है वहां उसके पास जाती है, जाकर रिषभदत्त ब्राह्मण को " जय हो विजय हो '' ऐसा कहकर बध जाती है, बधाकर भद्रासन पर अच्छी तरहसे बैठकर आश्वस्त, विश्वास पाईहुई वह दशनाखून सहित दोनों हथेलियों को शिर से
लगाकर हाथजोडकर इस प्रकार कहने लगी- " वास्तव मे यह सच है कि हे देवानुप्रिय! मैं आज जब कुछ साई हुई व कुछ जागती
हुर्ह शैय्या में विश्राम कर रही थी तब मैने इस प्रकार के उदार यावत् शोभासहित ऐसे चौदह महास्वपनो को देखकर जाग गई। * वे स्वप्न इस प्रकार से हैं। उन चौदह स्वप्नों के नाम इस प्रकार से है:- १: गज(हाथी), २: वृषभ(बैल), ३: सिंह, ४: अभिषेक
लक्ष्मी देवी का अभिषेक,५: माला- पुष्पमाला युगल, ६: चन्द्र, ७: सूर्य, ८: ध्वज, ९: कुंभ, १०: पह्मसरोवर, ११: क्षीरसमुद्र, १२: देवविमान, १३: रत्नो का ढेर, १४: निर्धूम अग्नि। हे देवानुप्रिय! इन उदार चौदह महास्वप नों का कल्याणकारी ऐसा विशिष्ट फल होगा, ऐसा मैं मानती हूं"।
७) उसके बाद वह रिषभदत्त ब्राह्मण देवानंदा ब्राह्मणी से स्वप्न संबंधी बात सुनकर, अच्छी तरह समझकर खुश हुआ, संतुष्ट
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