Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 12
________________ O+0000000000 वर्तमान में देव भव से च्यवन हो रहा है ऐसा वे जानते नहीं थे "। “अब देव भव से मैं च्यव गया हुं ऐसा जानते है। ४) जिस रात में श्रमण भगवान महावीर जालंधर गोत्र की देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षिमें गर्भ रुप में आये उस रात मे अर्धनिद्रा अवस्थामें वह देवानंदा ब्राह्मणी शैय्या (बिछौने) में सोये सोये इस प्रकार के उदार-कल्याणरुप-शिवरुप -धन्य और मंगलरुप और शोभासहित ऐसे चौदह महास्वप्नो को देखकर जागती है। ५) उन चौदह स्वप्नों के नाम इस प्रकार से है:-१: गज(हाथी), २: वृषभ(बैल), ३: सिंह, ४: अभिषेक- लक्ष्मी देवी का अभिषेक, - ५: माला- पुष्पमाला युगल, ६: चन्द्र, ७: सूर्य, ८: ध्वज, ९: कुंभ, १०: पद्मसरोवर, ११: क्षीरसमुद्र, १२: देवविमान, १३: रत्नो का ढेर, १४: निर्धूम अग्नि। ६) उस समय वह देवानंदा ब्राह्मणी इस प्रकार के उदार, कल्याणरुप, शिवरुप, धन्य और मंगलरुप तथा शोभायुक्त ऐसे चौदह महास्वप्नों को देखकर जाग्रत हो खूश हुई, संतुष्ट हुई, मनमें आनन्दित हुई और उसके मन में प्रीति उत्पन्न हुई । उसको अत्यधिक प्रसन्नता हुई। खुशी के कारण उसका हृदय धडकने लगा- प्रफुल्लित हुआ, बादल की धाराओं के गिरने से जिस 04-0卐0000000

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