Book Title: Antim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta Author(s): Gulabchand Vaidmutha Publisher: Gulabchand Vaidmutha View full book textPage 9
________________ ११ महापुरुषोंके चरित्र - श्री हेमचन्द्र सूरिकृति ' त्रेषठ शलाका पुरुष चरित्र ' में हैं 1 भगवान महावीर जिस सर्पिणी काल में उत्पन्न हुए हैं वह सर्पिणी काल कहा जाता है। इस अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभ देव जी हुए । उनके बाद २३ तीर्थंकर और हुए हैं जिनके नाम क्रमशः. इस प्रकार हैं (२) अजीतनाथजी (३) श्री संभावनाथजी (४) श्री अभिनन्दनजी (५) श्री सुमति - नाथजी ( ६ ) पद्मप्रभूजी (७) श्री सुपाश्वनाथजी (८) श्री चन्द्रप्रभू जी (६) श्री सुविधिनाथजी (१०) श्री शतिलनाथजी (११) श्री श्रेयान्सनाथजी (१२) श्री वासुपूज्यजी (१३) श्री विमलनाथजी (१४) श्री अनन्तनाथजी (१५) श्री धर्मनाथजी (१६) श्री शान्तिनाथजी (१७) श्री कुंथुनाथजी (१८) श्री अमरनाथजी (१६) श्री मलिनाथजी (२०) श्री मुनिसुव्रतनाथजी (२१) श्री नमिनाथ जी (२२) श्री नेमिनाथजी (२३) श्री पार्श्वनाथजी और (२४) श्री महावीर स्वामी || इस प्रकार तीर्थकरों की क्रमावली पूर्ण होते हुए काल निर्माण का इतना समय बीत चुका है कि जिसकी गणना प्रत्येक तीर्थकर की आयुष्य और उनके मध्यकालीन वर्षों की गिनती लगाने से ही प्रतीत हो सकती है । ये गणना जैन शास्त्रों में इतनी बताई गई है कि जिसे संख्या में तो लिख सकते हैं परन्तु उस संख्या को पढ़ नहीं सकते । इसका कारण यह है कि आधुनिक समय में उतनी संख्या पढ़ने के लिये शब्द ही निर्माण नहीं हुए । इसीसे जैन धर्म की प्राचीनता का पता चलता है कि यह कितना पुराना सनातन धर्म है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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