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अपभ्रंश भाषा के प्रमुख जन साहित्यकार : एक सर्वेक्षण
हरिदेव-अनश भाषा में 'मयणपराजयचरिउ' थे जिन्होंने संस्कृत मे मदन पराजय की रचना.की.पी। की रचना करने वाले हरिदेव ने इस खण्ड काव्य मे जैन इनका जन्म सोमकुन में वि. सं. १२-१५वी शती के बीच सिद्धान्तानुसार आचार विषयक तत्त्वो का उल्लेख किया में हुआ था" । 'मयपराजय चरिउ' में जिस प्रकार जैनहै। इनका उल्लेख करते हुए बतलाया है कि कौन मे तत्व धर्मविषयक तत्त्वों का उल्लेख हआ है, उससे,सिद्ध होता मोक्षमार्ग एव मोक्ष की प्राप्ति में वाधक हैं और कौन से है कि वे जैनधर्म पे क्षिा वश्य हप होगे। तत्त्व मोक्ष-प्राप्ति में साधक है। 'मयणपराजय चरिउ' के उपर्युक्त उल्नेख में यह साष्ट हो जाता है f. अपभ्रश प्रारम्भ मे हरिदेव ने जो अपना परिचय दिया है उससे भाषा में जैनधर्म दर्शन एवं सस्कृत परमात्रा मे सम्बधित ज्ञात होता है कि इनके पिता का नाम चगदेव और माता करने के लिए अपभ्रश के महाकवियो ने महाकाव्य और का नाम चित्रा था। किंकर कृष्ण राघव और द्विजवर खण्ड गि लिखकर भारतीय वाङ्मय के सम्बर्धन मे इनके भाई थे। इनकी छठी पीढी मे नागदेव द्वितीय हए बहन बड़ा योगदान दिया।
सन्दर्भ-सूची १. डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री . अपभ्रश भाषा और १३. (क) डा. विद्याधर जोहा पुरकर : स्वयम् का प्रवेश, साहित्य की शोध प्रवत्तिया पृ८। . वही। ३.
जैनविद्या अक १ पृ. ७-१८ । द्रष्टाहा हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति म (ख) निम्तृत परिनय के लिए देखें ---डा. नेमिचन्द्र जैनधर्म का योगदान । ४. डा. राजाराम जै। : रइधू
शास्त्री : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य साहित्य का आलोचनात्मक परिशीन पृ.६-१0।
पर परा, खड ४, ६-६८। ५. वही पृ.८।
१४. पउमरि उ, प्रशस्ति गाथा ३-४ । ६. (क) च उमुह सम्भवाण । स्वयम्भू: प उपचारउ १५. डा. हीरालाल जै। भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का प्रशस्ति गा. ७.
__ योगदान, पृ १५४। (ख) डा. हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति में जैन- १६. प्रशस्ति गाथा १०.६ ।
धर्म का योगदान पृ १५५ । ७. पृ २५ । १७ णायकुमारचारउको कवि प्रशस्ति की पक्ति ११-१५॥ ८. डा. राजाराम जैन : र इधू साहित्य का अलोच- १६. पुष्पदन्त . ज मह · चरिउ सन्धि ४ कडवक ३१ पृ १५६ नात्मक परिशीलन पृ. ११-१४ ।
१६. पु पदन्न : महापुरा भाग,सधि १, काव्य ६ । ..(क) महाकवि पुष्पदन्त : महापुराण भाम १, प्रथम २०. डा. नामचन्द्र शास्था : तीर्थंकर महावीर और उनकी सन्धि ९-५।
____ आचार्य पम्पग खण्ड ४, पृ. १०५ । (ख) र इध साहित्य का आलोचनात्मक पारशीलन २१. डा. हीरालाल जैन गायकूनार चरिउ को प्रस्तावना
प.
१०. माउर-सुग्रसिटिकइराए । पउमच रे उ, प्रशस्ति
२२. डा नेमिचन्द्र शास्त्री: ती. म. और उसकी आचार्य गाथा १६। ११. "क इरायस्स......।" प उमारउ, प्रशस्ति गाथा ४
परम्परा खण्ड ४, पृ. १०६ १०७ । एवं १६ । और भी देखें-जैन विद्या (स्वयम्भू
२३. वही। विशेषाक) १, पृ.६।
२४. णायकुमार चरि उ, प्रस्तावना, पृ. १६-१८ । १२. (क) णापण साऽभिधा। सयम्भ धरिणी महासत्ता २५. तीथकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
पउमचरिउ सन्धि २० की पुष्पिका ।। (ख) आइच्च. पृ.१०८।। एवि-पडिएवि-पडिमोवभाए आइच्यम्बिमाए। वा. २६. धकार्वाण । भाएमरदो समुभविण । मम उज्ज्ञां-कण्ड सयान-धारणाएं लहविय ।। वहीं, धसिरहा वि सुगणावरइ उ स रसइसमविण॥ सन्धि ४२ की पुष्पिका ।
भवितयतकहा २२/११.