Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 22
________________ लक्षाधिक जिन विम्बों के प्रतिष्ठापक :साह श्री जीवराज पापड़ीवाल 0 ले० श्री कुन्दनलाल जैन, दिल्ली श्री जीवराज पापडीवाल मंडासा नगर के निवासी थे प्रतिष्ठित कराया और फिर उन्हें भिन्न भिन्न स्थानों पर जो तत्कालीन राजस्थान का एक प्रसिद्ध नगर था और इस विराजमान कराया। समय यहां श्री राजा स्योंसिंह रावल का राज्य था जैसा इस शुभ कार्य के लिए श्री पापडीवाल ने यात्रासंघ कि फतेहपुर स्थित भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति के लेख का आयोजन किया जिसमें हजारों यात्री सम्मिलित थे। से ज्ञात होता है : इस यात्रा के लिए सहस्राधिक विशिष्ट वाहनों का तथा "स१५४८ बैसाख सुदि ३ श्रीमूलसघे भ० जिन- पालकियों का निर्माण कराया गया था जिनमे सभी जिनचन्द्र देवा: साह जीवराज पापड़ीवाल नित्य प्रणमति सौख्य विम्ब विधिवत् रूप से बिराजमान कर शिखर जो प्राति शहर मुडासा श्री राजा स्योसिंह रावल ।" क्षेत्रो की यात्रा के लिए प्रस्थान किया। जिनविम्बो की भोपापडीबाल खण्डेलवाल जाति के जैन थे। पापड़ी. प्रतिष्ठा और आदर को ध्यान में रखते हए लोग जिन• बाल आपका गोत्र था। शाह वखतराम ने अपने "बुद्ध विम्बों की पालकियो को स्वयं कंधों पर रख कर ले जाते बिलास" नामक ग्रन्थ में इस गोत्र का उल्लेख निम्न शब्दों थे। मार्ग मे जहां विश्राम होता वही मन्दिर में एक मति में किया है "जनवाणी भूलना पापड़ीवाल बनाये।" विराजमान कर देते। जहां मन्दिर या चैत्यालय नही . श्री पापडीबाल दि. जैन सस्कृति के प्रबल पोषक एवं होता नही चैत्यालय का निर्माण करा कर मूर्ति विगज' संरक्षक थे। जब उन्होने यवनो द्वारा मतिभजन का मान करा देते । इस तरह बैशाख शुक्ला तृतीया (अक्षय दूरभियान देखा तो उनकी आत्मा तड़फ उठी और उन्होंने ने तृतीया) स० १५४८ की प्रतिष्ठित मूर्तिया श्री पापड़ीवाल मन हो मन प्रतिज्ञा की कि यवन लोग जितनी भी मतियां ने जहां जहाँ की तीर्थ यात्रा की वही वही विराजमान तोड़ेंगे मैं उतनी ही नवीन प्रतिमाओ का निर्माण कर करते हुए आगे बढ़ते गये। • उन्हें जगह-जगह प्रतिष्ठित कराऊँगा । यद्यपि धृष्ट यवनो इस तरह श्री पापड़ीवाल द्वारा प्रतिष्ठित स० १५४८ ने पुरानी कलापूर्ण अनेको मतियों का भंजन कर की मूर्तियां गुजरा, पंजाब, हरियाणा, बंगाल उ० प्र०, कमा एवं पुरातत्त्व का अपमान तो किया ही साथ ही महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार, बुन्देलखड आदि प्रदेशों में भारतीय संस्कृति की बहमल्य धरोहर को सदा के लिए प्रचुरता से मिलती हैं। ये मूर्तियां इस बात की प्रतीक नष्ट कर दिया खण्डित कर दिया। इस पीड़ा से पीड़ित कि यवनो द्वारा मूर्तिभंजन को चुनौती को श्री पापडीवाल भी पापडीवाल ने लक्षाधिक जिनविम्बों का निर्माण कर- ने मिशन के रूप मे सभाला था और वे अपने मिशन में वाया और अक्षय तृतीया (बैशाख शुक्ल तृतीया) सं० पूर्णतया कामयाब भी हुए थे। दि० जैन संस्कृति के प्रबल १५४८ तदनुसार ई. सन् १४.२ मे एक विशाल गजरथ पोषक श्री पापड़ीवाल को उस महान् गजरथ प्रतिष्ठा को प्रतिष्ठा महोत्सव कराया, इस महायज्ञ के होता श्री भ. इस अक्षय तृतीया को पांच सौ वर्ष हो जावेंगे, दि. जैन जिनचन्द्र थे जो जयपुर शाखा के दिल्ली पट्ट पर आसीन समाज को इस दिशा में कुछ समारोह कर श्री पापड़ीवाल थे। इसी प्रतिष्ठा समारोह में श्री पापड़ीवाल ने जो का पुण्य स्मरण करना चाहिए। यहां हम कुछ मति लेख लक्षाधिक जिनविम्बो का निर्माण कराया था, उन्हें प्रस्तुत कर रहे हैं जिनमें श्री पापड़ीवाल एवं भ. श्री

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