________________
श्री शांतिनाथ चरित सम्बन्धी साहित्य
0 कु० मृदुल कुमारी, विजनौर
'श्री शान्तिनाथ पुराण' जैन वाङ्मय का अनुपम ग्रंथ (६५० ई.) में कन्नड़ कविता में अपने को (कन्नड़ कविहै। इस ग्रन्थ मे महाकवि 'असग' ने जैन धर्म के सोलहवे तेयोल असगम) वाक्य द्वारा असग के समान होना बततीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ का चरित्र वणित किया लाया है।
यह महाकवि राष्ट्रकुट नरेश कृष्ण तृतीय (ई. ६३६भगवान शान्तिनाथ का चरित्र जन साहित्यकारों का ९६८) के दरबारी कवि थे। इनकी रचना का काल ई० प्रिय तथा प्रेरक विषय रहा है। दसवी शताब्दी मे महा- सन् १५० के आसपास का रहा होगा। यह वेगिमण्डलाकवि असग ने 'श्री शान्तिनाथ पुराण' की रचना की। न्तर्गत पंगनर के निवासी थे। वेगिमण्डल के पंगनर में जिसमे भगवान् शान्तिनाथ के पूर्व भवो का विस्तृत वणन नागमय्य नाम का एक जैन ब्राह्मण था। मल्लपय्य और मिलता है। उनके गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण पन्नमय उसके दो पुत्र थे। वाणियवाडि के जिनचन्द्र देव आदि पञ्चकल्याणको का वर्णन भी मिलता है। इन्होंने इनके गुरु थे और अपने गुरु के गौरवार्थ विनयपूर्वक इन आचार्य गुणभद्र के उत्तर पुराण के बासठ-सठवें पर्व मे दोनों भाइयो ने १६वें तीर्थकर शान्तिनाथ की जीवनी पर उल्लिखित भगवान् शान्तिनाथ के चरित को शान्तिनाथ आधारित महाकवि पौन्न के द्वारा शान्तिनाथ पुराण की पुराण के रूप मे प्रस्तुत किया है। इस पुराण मे १६ सर्ग रचना कराई। इसका दूसरा नाम 'पुराण चूड़ामणि' है। है जिनमे कुल मिलाकर २३५० श्लोक है। इसकी रचना मल्लपय्य की एक बेटी थी अत्तिमब्बे । 'दान चिन्तामणि' शक सवत् ६१० के लगभग हुई है। शान्तिनाथ पुराण के इस महिला की उपाधि थी। इसकी दानशीलता सर्वत्र कवि प्रशस्ति पद्यो से स्पष्ट होता है कि असग ने साधुजनो विख्यात रही। इस देवी ने महाकवि पौन्न के शान्तिपुराण का प्रकृष्ट मोह शात करने के लिए शान्ति जिनेन्द्र का को एक हजार प्रतियां लिखवाकर रत्न एवं स्वर्ण की जिन यह 'शान्तिनाथ पुराण' रचा था।
प्रतिमाओं के साथ उनका सम्पूर्ण कर्नाटक मे दान किया। प्राकृत, सस्कृत, कन्नड, तमिल, मराठी आदि भारतीय शान्तिनाथ पुराण के प्रारम्भ में 8वें आश्वास तक भाषाओं में इस चरित को प्राधार बनाकर लिखे गये तीर्थकर शान्तिनाथ के ११ पूर्वभवो का वर्णन है। केवल अनेक कवियों के ग्रथ उपलब्ध होते है जिनका सक्षिप्त अन्तिम तीन आश्वासो मे शान्तिनाथ का चरित्र प्रतिविवरण इस प्रकार है
पादित है । पौन्न की इस शान्तिनाथ पुराण कथा में और १. शान्तिनाथ पुराण : कन्नड़ कवि पौन्न- कमलभव (ई. १२३५) के शातिपुराण की कथा में अनेक पौन्न कन्नड भाषा के प्रसिद्ध कवि हुए हैं । कवि चक्रवर्ती, स्थलो पर अन्तर दृष्टिगोचर होता है, इसका क्या कारण उभय चक्रवर्ती, सर्वदेव कवीन्द्र और सौजन्य कुन्दांकुर है ? यह स्पष्ट रूप से ज्ञात नही है । शांतिपुराण मे लोकाआदि इनकी उपाधियां थी। इनके गुरु का नाम इन्द्रनदि कार देशानिवेशन, चतुर्गतिस्वरूप आदि जैन पूराण के था। पौन्न तो बाण की बराबरी करते हैं। नयसेन ने लक्षणों के साथ महाकाव्यो के ६८ लक्षण भी मौजद । अपने धर्मामत के ३६वें पद्य के निम्न वाक्य 'असगन देसि जहां तहां विविध रसोत्पत्ति की अनुपम रचनाएं भी वर्तपोन्नत महोत्तेन तिवेत्त देडगुं' मे असग और पौन्न का मान हैं फिर भी यह कहना पड़ेगा कि पप और रत्न को नामोल्लेख किया है। पोन्न ने स्वयं शान्तिनाथ पुराण रचनाओ मे उपलब्ध वर्णन-सौंदर्य और पात्र रचना कौशल