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श्री शान्तिनाबपरित सम्बन्धी साहित्य
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यद्यपि इस ग्रंथ में कथावस्तु की दृष्टि से कोई नवी- बीच-बीच में अपभ्रश भाषा भी प्रयुक्त हुई है। इसकी नता नहीं है, किन्तु काव्य कला और शिल्प की दृष्टि से रचना खम्भात में की गई। ग्रंथ की प्रस्तावना में कुछ रचना महत्वपूर्ण है। ग्रंथ का वर्ण्य विषय पौराणिक है आचार्यों के नामों का उल्लेख है-इन्द्रभूति (कविराज इसी से उसे पौराणिकता के सांचे में ढाला गया है। चक्रवर्ती) भद्रबाह-जिन्होंने वासुदेव चरित लिखा (सवाय आलोच्यमान रचना अपभ्रंश के चरित काव्यो को कोटि लक्खं बहकहाकलियम) हरिभद्र समणादित्य कथा के प्रणेता की है। चरित काव्यों के सभी लक्षण हैं। प्रत्येक सधि के दाक्षिण्यचिह्न सूरि कुवलयमाला के कई तथा सिद्धषि आरम मे कवि ने अग्रवाल श्रावक साधारण को शांति- उपमितिभवप्रपचा क कर्ता (यह अब तक अप्रकाशित है)। नाथ से मंगल कामना की है।
___ इनकी एफ कृति 'मूल शुद्धि प्रकरण टीका' है। इसके अथ रचना में प्रेरक जोयणिपुर (दिल्ली) निवासी चौथे और छठे स्थानक मे आने वाले चन्दना कथानक तथा अग्रवाल कुलभूषण गर्ग गोत्रीय साहू भोजराज के पांच ब्रह्मदत्त कथानक को देखने से ज्ञात होता है कि पुत्रो मे से द्वितीय पुत्र ज्ञानचन्द्र का पुत्र साधारण था, इनमें आने वाली अधिकांश गाथाएं तथा कतिपय छोटेजिसको प्रेरणा से ग्रथ की रचना की गई है। कवि ने बडे गदा सन्दर्भ शीलाकाचार्य के 'च उपन्नमहापुरिसचरिय' प्रशस्ति मे साधारण के परिवार का विस्तृत परिचय मे आने वाले 'वसुमइसविहाणय' के अवशिष्ट भागों में से कराया है। उसने हस्तिनापुर की यात्रार्थ सघ चलाया था कितना ही भाग अल्पाधिक शाब्दिक परिवर्तन के साथ और निज मन्दिर का निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा चउपन्नमहापुरिमचग्यि का ही ज्ञात होता है । अनुमान है सम्पन्न कर पुण्यार्जन किया था । ज्ञानचन्द्र की पत्नी का सांतिनाहचरिय पर भी चउप्पन्न का प्रभाव हो। चकि नाम सउराजही था जो अनेक गुणों से विभूषित थी। अप्रकाशित होने से कहना कठिन है। शातिनाथ पर इस उससे तीन पुत्र हुए थे। पहला पुत्र सारंग साहु था, जिसन विशाल रचना के अतिरिक्त प्राकृत में एक लधु रचना ३३ सम्मेद शिखर को यात्रा की थी। उसकी पत्नी का नाम गाथाओं में भी जिन बल्लभ मूरि रचित तथा अन्य सोमतिलोकाही था। दूसरा पुत्र साधारण बड़ा विद्वान् और प्रभ मूरि रवित का उल्लेख मिलता है। गुणी था। उसने शत्रुजय की यात्रा की, उसकी पत्नी ५. शांतिनाथ चरित : दुलोचन्द्र-इम में १६३ सोवाही थी उससे चार पुत्र हुए थे-अभयचन्द्र, मल्लि- तीर्थंकर शातिनाथ का चरित्र वणित है"। भगवान् शांतिदास, जितमल्ल और सोहिल्ल। उनकी चार पत्नियों के नाथ तीर्थङ्कर के साथ चक्रवर्ती तथा कामदेव भी थे। इन नाम चंदणही, भदासही, समदो और भीखणही। ये चारो सभी विशेषताओ का इम काव्य मे वर्णन है। काव्य मे ही पतिव्रता, साध्वी और धर्मनिष्ठा थी। इस तरह साह १६ अधिकार हैं तथा ग्रन्थान ४३७५ श्लोक प्रमाण है। साधारण ने समस्त परिवार के साथ 'शांतिनाथ चरित' इमकी भाषा अलकारिक तथा वर्णन रोचक एवं प्रभावोका निर्माण कराया।
त्पादक है । प्रारम्भ में श्रृंगार रस के साथ-साथ शात रस कवि ने इस ग्रंथ की रचना वि. सं. १५८७ की की ओर प्रवृत्ति पर कवि ने अच्छा प्रकाश डाला है। कार्तिक कृष्ण पंचमी के दिन मुगल बादशाह बाबर के ६. शान्तिनाथ चरित : श्रीधर-११वी-१२वी राज्यकाल मे योगिनीपुर में बनाकर समाप्त की थी"। शताब्दो के आचार्यों में श्रीधर ने सभवत: मं० ११६६ मे
४. शांतिनाह चरियं : देवचन्द्राचार्य-आचार्य शांतिनाथ चरित की रच-। को"। गुणसेन के शिष्य और हेमचन्द्राचार्य के गुरु पूर्णतल्ल- ७. शांतिनाथ चरित : माणिक्यचन्द्र सरिगच्छीय देवचन्द्राचार्य कृत १६। तीकर शांतिनाथ का मम्मट कृत काव्य प्रकार के टीकाकार माणिक्यचन्द्र सरि चरित लिखा गया"।
की दूसरी रचना 'शांतिनाथ चरित है। इसकी एक ताडइसका परिणाम ग्रन्थान १२००० है। इसकी रचना पत्रीय प्रति मिलती है। इसमे आठ मर्ग हैं। इसकी रचना संवत ११६. में हुई। यह प्राकृत भाषा में गद्य पद्यमय है। विस्तार ५५७४ श्लोक प्रमाण है जो कवि ने स्वय