Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 135
________________ गतांक से आगे: श्री शांतिनाथ चरित सम्बन्धी साहित्य कु० मृदुल कुमारी, बिजनौर १०. शान्तिनाथ चरित : भाव चन्द्र सूरि- नाओं का उल्लेख अंकित है और उसके प्रत्येक पद्य के श्री भावचन्द्र सूरि ने इस शान्तिनाथ चरित की रचना अन्तिम चरण में 'दिग्बाससां शासनम्' वाक्य द्वारा दिगंबर संवत् १५३५ मे सरल सस्कृत गद्य में की थी। शासन का जयघोष किया है। भावचन्द्र सूरि पूर्णिमा गच्छ के पावं चन्द्र के प्रशिष्य १२. शान्तिनाथ स्तोत्र : भट्टारक पचनन्दिएवम जयचन्द में शिष्य थे। ग्रन्थ का प्रमाण ६५०० १५वी शताब्दी के मु िपपनन्दी भट्टारक प्रभाचन्द्र के प्रलोक। हम ग्रन्थ को ग्रन्पकार द्वारा लिखी गई सवत् पट्टधर विद्वान थे । इनकी जाति ब्राह्मण थी। इनके पद .५३५ की एक प्रति लाल बाग बम्बई मे एक भडार से पर प्रतिष्ठिा होने का समय पट्टावली में संवत् १३८५ मिली है। पौष शुक्ला बतलाया गया है। वे उस पट्ट पर सवत् १४७३ इसके छह प्रस्तावों में भगवान् शांतिनाथ तीर्थंकर के तक आसीन रहे। भट्टारक शुभचन्द इनके शिष्य थे। १२ भवो को वर्णन है। वर्णन क्रम में अनेक उपदेशात्मक पप्रनन्दी की अनेक रचनायें हैं। जिनमे शान्तिनाथ स्तोत्र कहानियाँ भी आ गई है जिससे ग्रन्थ का आकार बहुत प्रमुख है। इस स्तोत्र मे देवपूजा, गुरु तथा सिद्धपूजा का बढ़ गया है। बीच-बीच में प्रसंगवश ग्रन्थान्तरों से लेकर उल्लेख है। प्राकृत और सस्कृत पद्यो का उपयोग किया गया है। प्रथ १३. शान्तिनाथ स्तुति : ब्रह्म श्रुतसागर-ब्रह्म के समान होते-होते रत्तचूड़ की सक्षिप्त कथा दी श्रुत सागर मूलसघ सरस्वती गच्छ और बलात्कारगण के विद्वान थे। इनके गुरु का नाम विद्यानन्दी था जो भट्टारक ११. शासनचस्त्रिशतिका : मदनकोति अर्ह- पद्मनन्दी के प्रशिष्य और देवेन्द्र कीति के बाद ये सरत के दास-मदनको त वादीन्द्र विशालकीति के शिष्य थे और पट्ट पर आसीन हुए थे। बहुत विद्वान थे । इनकी 'शासन चतुस्त्रिशतिका' नाम की ब्रह्म श्रुत सागर ने अपनी रचनाओं मे उनका रचनाछोटी-सी रचना है जिसकी पर सख्या ३५ है। जो एक काल नहीं दिया, जिससे यह निश्चित नहीं कि उन्होंने प्रकार से तीर्थ क्षेत्रों का स्तवन है, उनमे पोदनपुर के ग्रन्थों की रचना किस क्रम से की है। परन्तु यह निश्चित बाहबली, श्रीपुर के पार्श्वनाथ शख जिनेश्वर, धारा के कहा जा सकता है कि वे विक्रम की १६वी शती के पार्श्व जिन, दक्षिण के गोम्मट जिन, नागद्रह जिन विद्वान है। इनके गुरु भट्टारक विद्यानन्दी के वि० सं० मेदपार (मेवाड़) के, नागफणि ग्राम के मल्लिजिनेश्वर, मालवा के मगलपुर के अभिनन्दन जिन, पुष्पपुर (पटना) १४६६ से १५२३ तक ऐसे मूर्तिलेख पाये जाते हैं जिनको के पूष्पदन्त, पश्चिम समुद्र के चन्द्रप्रभ जिन, नर्मदा नदी प्रतिष्ठा भट्टारक विद्यानन्दी ने स्वय की है। इससे FIES के जल से अभिषिक्त शान्तिजिन, पावापुर के वीर जिन, है कि विद्यानन्दी के प्रिय शिष्य ब्रहश्रतसागर काही गिरनार के नेमिनाथ, चम्पा के वासुपूज्य, आदि तीर्थों का यहा समय है । स्तवन किया गया है। स्तवनों में अनेक ऐतिहासिक घट- ब्रह्मश्रत सागर द्वारा रचित 'शान्तिनाथ स्तुति' में

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