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तब सुधार कैसे हो ? जब :
० नितान्त अपरिग्रही कहलाने के अधिकारी कतिपय वेषधारी बैक-बेलैन्स और भव्य भवनादि में लीन हों।
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0 समस्त समाज को एक सूत्र में बांधने की बातें करने वाले स्वयं अपने सीमित-परिकर को ही एकता में रखने में असमर्थ हों।
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समाज को सच्चरित्र बनाने में उद्यमी स्वयं मद्य पान, घम्रपान, रात्रि भोजन आदि में लीन हों। देव-दर्शन आदि दैनिक कर्तव्य तो संयोग से यदा-कदा ही करते हों।
ऊंची ऊंचो तत्त्वचर्चा का रस-पान कराने में उद्यमो स्वयं हो विसंवादों को जन्म देते हों।
0 शुद्ध खान-पान का उपदेश देने वाले लुक-छप कर बाजार में चाट पकोड़े, मेवा मिष्ठान्न उड़ाते हों और विवाह-शादियों में पंचतारा होटलों तक में भाग लेते हों।
आत्मा को अजर-अमर, पूर्ण शुद्ध बताने व शरीरादि के नश्वर होने का उद्घोष करने वाले शारीरिक-व्याधिग्रस्त होने पर डाक्टरों के चकर में पड़, अशुद्ध दवाइयों के सेवन और अस्पतालों में भर्ती होते फिरें।
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0 प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र पर कमरे खाली होने पर भो साधारण यात्रियों को बण्टित न हों ओर अपरिचित-परिचित नगर वासियों को रिजर्व रखे जाते हों।
x 0 बिना राशि लि. पंचकल्याणक आदि कराने की घोषणा करने वालो संस्थाएँ अन्य कई बहानों से द्रव्य संचय करती हों।
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पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं धार्मिक-भावना से अछूती-केवल द्रव्य-संचय के लिए होने लगें।
D समाज को मार्ग-दर्शन देने वाले (कथित) नेता स्वय धर्म-विरुद्ध मद्य-मांस, तम्बाकू, खण्डसारी जैसे हेय व्यवसायों में लीन हों।
महासचिव वीर सेवा मन्दिर, २१दरियागंज, नई दिल्ली-२