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पाश्वनाथ और पद्मावती
अनुसार उनका विवाह राजा प्रसेनजित की पुत्री प्रभावती पाकर ध्यानस्थ हुए। हाथी मद में था और वह उन्हें से हुआ था। किंतु प्राचीन श्वेतांबर ग्रंथ कल्पसूत्र से मारने के लिए लपका किंतु जैसे ही उसने उनके वक्षस्थल इसका समर्थन नहीं होता है। केरल में भी इसी प्रकार की पर श्रीवत्स चिह्न देखा, उसे मुनि से अपने पूर्व जन्म के एक भ्रांति है। वहां नागरकोविल नामक एक स्थान पर संबंध का स्मरण हो आया। मुनि से उसने धर्म श्रवण नागराज मन्दिर या कोविल है। उसमें पार्श्वनाथ को किया और लौट गया। अब वह दूसरों के द्वारा तोड़ी गई पीतल की मति शेषशायी विष्ण के रूप मे पूजित है (फणा- पत्तियों और शाखामों को खाकर ही अपना जीवन-निर्वाह वली के कारण यह मम्भव हुआ होगा) यह मन्दिर १६वीं करने लगा। वह कमजोर हो गया। एक दिन वह पानी शताब्दी तक जैन मन्दिर था वहां यह बताया जाता है पीने के लिए वेगवती नदी के किनारे गया वहाँ वह दलदल कि पार्श्वनाय का विवाह हुआ था और और उनकी तीन में फंस गया। कमठ उसी वन में मरकर कुक्कुट सर्प के फणों का छत्र धारण करने वाली दो पत्नी है। यह गलत रूप में जन्मा था। उसने हाथी को इस लिया। हाथी पर धारणा इसलिए बनी जान पड़ती है कि इस मंदिर के कर सहसार नामक स्वर्ग में देव के रूप मे उत्पन्न हुआ। प्रवेश द्वार पर तीन-चार फुट ऊंची धरणेन्द्र और पद्मावती स्वर्ग में अपनी आयु पूर्ण करने के बाद मरुभूति का की प्रतिमाएं बनी हुई है जिनकी आकृति ऊपर की ओर जन्म पुष्कलावती देश में राजा विद्युन्मति के यहाँ रण मेमानवीय है और नीचे का भाग सकार है। दोनों के वेग नामक पुत्र हआ। नाज-सुख भोगने के बाद जब उसे ऊपर तीन फणों की छाया है। जैन आख्यान की जानकारी अपनी आयू अल्प जान पड़ी, तो उसने मुनि-दीक्षा ले ली। के अभाव मे यह धारणा बन गई ऐसा जान पड़ता है। वह हिमगिरि की एक गुफा में ध्यान मे लीन हुआ । उधर ये पार्श्व के यक्ष-यक्षी हैं।
कमठ का जीव धूमप्रभा नामक नरक की भयंकर यातपापर्व को जीवन गाथा अनेक पिछले जन्मों से चली नाएं भोगने के बाद उसी स्थान पर अजगर के रूप में आ रही शत्रुता और अमाधारण क्षमा को अनोखी कहानी जन्मा था। उसने मुनि को निगल लिया । वे अच्युत स्वर्ग है जो आज भी इतनी ही रोचक बनी हुई है। इसके मे देव हुए। अतिरिक्त, अपने उपकारी पार्श्वनाथ के प्रति धरणेंद्र और स्वर्ग के सुखी जीवन के बाद मुनि के जीव ने पप पद्मावती ने कृतज्ञता का जो उदाहरण पाव के ही जीवन- देश के अश्वपर नगर के राजा वचवीर्य के घर वजनाभि काल में प्रस्तुत किया और जिस प्रकार पार्ट्स के अनु- नामक पूत्र के रूप में जन्म लिया। उसने चक्रवर्ती के सुख यायियों का आज भी उपकार करते चले आ रहे हैं, वह भोगे और अंत मे मनि जीवन अपना लिया। अजगर छठे भी एक अनूठा सत्य है । यह कहानी उत्तरपुराण के आधार भयंकर नरक में गया था। वहाँ असह्य यातनायें भोगने पर यहाँ दी जा रही है।
के बाद वह कुरंग नामक भील हुआ । संयोग से वजनाभि सुरम्य देश में पोदनपुर नाम के एक मगर में परविंद मनि भी उसके स्थान के समीप योग मुद्रा में लीन हुए। नाम का एक राजा राज्य करता था। उसकी नगरी में मोल ने वैरवश उनको अनेक प्रकार के कष्ट दिए जिनके विश्दभूति नामक एक श्रुतिज्ञ ब्राह्मण भी निवास करता कारण उनका प्राणांत हो गया। वे ग्रेवेयक नामक स्वर्ग था । उसके दो पुत्र थे । एक का नाम कमठ था और दूसरे विमान में श्रेष्ठ अहमिंद्र देव हुए। का नाम मरुभूति था। मरुभूति की स्त्री वसुंधरी अत्यन्त अहमिद पद का अतिशय सुखमय दीर्घ जीवन जीने के सुन्दर थी। उसको पाने के लिए कमठ ने मरुभूति को बाद मरुभूति का जीव कोशल देश की अयोध्या नवरी में मार डाला।
राजा बज्वबाहु के यहाँ आनन्द नामक पुत्र के रूप में मरुभति मर कर मलय देश के एक वन में वज्रघोष उत्पन्न हुआ । बडा होने पर उसने अष्टाह्निका पूजा कर. नामक हाथी हुआ । इसी बीच राजा अरविंद राज्य त्याग वाउ जिसमें विपुलमति नामक मुनि शामिल हुए। राजा कर मुनि हो गए थे और वे भ्रमण करते हुए उसी वन मे आनन्द ने मुनि से प्रश्न किया-"जितेन्द्र प्रतिमा तो