Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 131
________________ पृष्ठ ४५ ४६ ४६ ૪૨ ५२ ५२ ५२ ५२ ५७ ५८ ६० ६७ ६६ ६६ ७१ ७२ ७४ ७७ ७८ ७६ ८० ८० ८४ ८६ ८६ ८६ ८६ ८६ पंक्ति xx u mm x १६ १४ २३ २५ १०.१५ १२ १६ २५ १३ ३० २६ २३-२४ २२ x १५ ( चरम ) १६-१८ ५ १६ २० २१ २१ अशुद्ध दोहि मि सपहि अन्तिम समय से जपला १६ का शुद्धिपत्र अन्त में जो दो हादि होता है क्योंकि वहाँ इसका विभाषा ग्रन्थ इसकी गाथा २०६ त्ति एदं पुण पुच्छासुत । नियम से स्थिति वीरसेन अनन्तर कृष्टि तविरुद्ध अत्यन्त विरुद्ध आगे इसका लिये विभाषा ग्रन्थ असंजगुणत नियम उदय मे प्राप्त हुए माणासवेण आविलय सविस् चाहिगे । जो नियम से उदयावलि मे ... रूप से परिणमती है पविमाणातविट्टीग एक कृष्टि सदृश धनरुप होकर परिणमती है । तरह से करने के लिए उदय सम्पत्ति शुद्ध दोहिहि पहि प्रथम समय से बाद मे जो दो होदि, होता है, और सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों का अबन्धक होता है, क्योंकि वहाँ यह विभाषा ग्रन्थ इसके पूर्व गाथा २०६ सि एद पद वापरणमुक्त ति एदं पुण पुच्छामृत नियम से सर्वस्थिति जिनसेन अनन्त कृष्टि तबिरुद्ध विरुद्ध आगे इसी का लिए आगे के विभाषा ग्रन्थ असखेज्जगुणत्तनियम उदय में पति २१ मागास से बावलिय सव्विस्से चाहिए । जो पूर्व प्रविष्ट अर्थात् उदयावली को प्रविष्ट अनन्त अवेद्य मानकृष्टिये हैं; जो कि विवक्षित समष्टि के अधस्तन व उरिम असंख्यात भाग प्रमाण है ऐसी जो है, उनमें से प्रत्येक करके सबकी सब एएक बंदमान मध्यमकृष्टि रूप से परिणमती है। पविसमाषाणकिट्टीम एक कृष्टि के सदृश धन परिणमते हैं । तरह से स्पष्ट करने के लिए उदय सम्प्राप्ति

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