________________
१२. वर्ष ४५, कि. १
अनेकान्त
५. जब आंखें आती हैं तो दुःख देती हैं, जब आंखें जाती हैं तो दुःख देती हैं। जब आँखें लगती हैं तो दुःख देती हैं। आँखों में सुख कहाँ ? ये आँखें दुःख को खनी हैं, सुख की हनी हैं। यही कारण है कि सन्त संयत साधुजन इन पर विश्वास नहीं रखते और सदा सर्वथा चरणों लखते विनीत दृष्टि हो चलते हैं। (पृ० ३५९-३६.) १. एक के प्रति राग करना दूसरो के प्रति द्वेष सिद्ध करता है। जो रागी भी है, द्वेषी भी है, वह सन्त
नहीं हो सकता । (पृ०३६३) ७. पाप भरी प्रार्थना से प्रभु प्रसन्न नहीं होते। पावन
प्रसन्नता पाप के त्याग पर आधारित है। ८. स्व को स्व के रूप में पर को पर के रूप में जानना
ही सही ज्ञान है । स्व में रमण करना ही सही ज्ञान
का फल है। (पृ० ३७५) ६. तन और मन का गुलाम ही पर-पदार्थों का स्वामी
बनना चाहता है। (पृ. ३७५) १०. सुखा प्रलोभन मत दिया करो, स्वाश्रित जीवन जिया
कगे। (पृ० १८७) ११. पर के दुःख का सदा हरण हो । जीवन उदारता का उदाहरण बने । (पृ० ३८८)
(मूक माटो महाकाव्य)
पृ० २६ का शेषांष) खण्डन करने का प्रयास किया है। दार्शनिक मान्यताओ संस्कृति को जानने में एक कड़ी का कार्य करती है। के समीक्षात्मक विश्लेषण को प्रस्तुत करने के लिए इस ग्रंथ में चार्वाक डोट मांख्य व वेदान्त आदि दर्शनों को मय -सहायक आचार्य प्राकृत भाषा एवं साहित्य विभाग, बिन्दु बनाया गया है। इस तरह दार्शनिक दृष्टि से इस
जैन विश्वभारती इस्टीट्यूट (मान्य विश्वविद्यालय) इस ग्रन्थ में पर्याप्त सामग्री मिलती है जो भारतीय
लाडनूं-(राज.), ३४१ ३०६
सन्दर्भ-सूची १. महापुराण (पुष्पदन्त) गम्पा. ब अनु.-पी. एल. ७. वही - २६१-६.
बोट, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली [भाग १-४)। ८. णयकुमारचरिउ-१७-१६. २. णायकुमारचरिउ (पुष्पदन्त) सम्पा व अनु.-डा. ६. जस०-२१८. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली १६७२. १०. वही-२॥१४॥६.
हरचारउ (पुष्पदन्त) सम्मा. व अनु.-डा. पी. १. अण्णु धम्मु गुणु मोक्खु ण याणमि । एल.वैद्य एवं डा. हीरालाल जैन भारतीय ज्ञानपीठ, हउँ पचिदिय सोक्खई माणमि ॥ जस० ३३९।३. दिल्ली, १९६२.
१२. जस०-३।२०१७.८. ४. जगि वे उ मूलुधम्मछिवहो, वेएण मग्गु भासिउणिवहो। १३. वही--३।२६।३. तंकिज्जा बलि वेए महिउ, पसु मारण परमधम्मु कहिउ। १४. वही-३२६।४. पसु हम्मद पलु जिम्मा सग्गहो मोक्खहो गम्मइ ।। १५. वही-३॥२११५-१६.
जस. २११५८-१० १६. इरा एंतु सदुणउ दोसइ, पर कण्णम्मि लग्गओ। ५. जस०-२।१६.
णज्जइ जेम तेम जगि जीउ वि बहजोणीकुलं गओ।। ६. वही-३।११।१०.
-जस० ३।२२।१-२.