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संस्कृत न चम्मू और चम्पूकार
सौभाग्य से आशाधर के काल निर्धारणार्थ अधिक जैन (वीरसागर महाराज संघस्थ) ने वीर नि०सं० २४७६ महीं भटकना होगा, उन्होने अपनो अन्तिम रचना 'अनगार में प्रकाशित किया है, के प्राक्कथन में तत्कालीन जैन धर्मामत की टीका' वि० सं० १३०० मे पूर्ण की थी। गजट के सम्पादक प० इन्द्रलाल जैन ने पिता की मृत्यु के अत: उनका रचना काल ई. की १३वीं शती का पूर्वाधं समय उनकी आयु ७ वर्ष बतागी है" जो प्रान्त है। यतः निश्चित है। अजितसेन का रचना काल डा० नेमिचन्द्र
लेखक स्वय मुनि ज्ञानसागर ग्रन्थमाला ब्यावर के शास्त्री ने वि० स० १३०७-१३१७ तथा डा. ज्योति
प्रकाशक पं. प्रकाशचन्द जैन से मिला और उन्होंने १० प्रसाद जैन ने १२४०-१२७० ई. (१२९२-१३२७ वि० वर्ष की अवस्था ही ठीक बताई। स०) माना है।
पिता की मृत्यु के बाद इन्हें जीविकोपार्जनाथं बाहर आशाघर और अजितसेन के मध्यवर्ती होने के कारण
जाना पड़ा। वे बड़े भाब के साथ गया जाकर काम सीखने अहंदास का समय १३वी शताब्दी ई. का मध्यभाग
लगे, यहीं बनारस के कुछ छात्रों से परिचय हो जाने से मानना समीचीन होगा।
आप स्याद्वाद महाविद्यालय में आ गये और बिना परीक्षा पुरुदेव चम्पू के १० स्तबको में तीर्थंकर ऋषभनाथ ।
के ही सभी म त्वपूर्ण ग्रन्थों को पढ़ डाला, वे शाम को और उनके पूर्व भवों का चित्रण है। प्रारम्भ के तीन गमछे बेचकर विद्यालय में अपना भोजन खर्च जमा स्तबकों मे उनके १० पूर्वभवों का चित्रण है। अन्तिम कराते थे। कुलकर नाभिराय का ऋषभदेव पुत्र हुमा । (चतुर्थ स्तब्ध) अध्ययनोपरांत गांव में दुकानदारी करते हुए जैन देवताओं ने जन्मकल्याणक मनाया (पचम स्तब्ध) यश- पाठशाला में नि.शुल्क पढ़ाया तथा आजीवन ब्रह्मचारी स्वती और सुनन्दा से उनका विवाह हुआ तथा १०१ पुत्र रहे। वि० सं० २००४ में मुनिदीक्षा ग्रहण की। २०२६ व २ पुत्रियाँ दोनो रानियों से हुई। (षष्ठ स्तबक) पुत्रो मे नसीराबाद (राजस्थान) मे समाधिमरण पूर्वक स्वर्गको यथायोग्य उपदेश देकर उन्होने दीक्षा ले ली, (सप्तम वास हा। नसीराबाद में प्रापकी स्मृति में एक स्मारक स्तबक) १ वर्ष की कठोर साधना के बाद हस्तिनापुर में बनाया गया है। राजा श्रेयांश ने उन्हें सर्वप्रथम इक्षरम का आहार दिया। मुनि श्री विलक्षण प्रतिभा के धनी थे उन्होंने हिन्दी (अष्टम स्तबक) पुत्र भरत ने दिग्विजय यात्रा की। और संस्कृत में लगभग २१ ग्रन्थों का प्रणयन किया। (नषम स्तबक) भरत बाहुबलि का युद्ध हुआ तथा बाहु- सस्कृत रचनाओ मे ३ महाकाव्य, १ खण्डकाव्य, १ चम्पू, बलि, भगवान, भरतादि ने मोक्षपद पाया । अन्तिम मगल १ शतक तथा १ छायानुवाद है। के साथ काव्य समाप्ति (दशम स्तबक)।
महाकाव्य जयोदय जयकुमार सुलोचना की कथा दयोदय चम्पू:
वीरोदय भगवान महावीर की कथा दयोदय चम्पू के रचयिता मुनि श्री ज्ञानसागर महा
सुदर्शनोदय सेठ सुदर्शन की शील कथा राज का गृहस्थावस्था का नाम भूरामल था। पिता का खण्ड काव्य भद्रोदय" सत्य का प्रभाव दिखाने वाली नाम चतुर्भुज और माता का नाम धृतवरी देवी था।
सत्यघोष की कथा। जन्म जयपुर के समीप राणोली (वर्तमान सीकर जिला) चम्पूकाव्य दयोदय मगसेन धीवर की कथा ग्राम में द्वावडा गोत्रीय खण्डेलवाल जैन परिवार मे हमा शतक मुनि मनोरजन था। ये पांच भाई थे। पिच चतुर्भज की मृत्यु के समय
शतक मुनियों के कर्तव्य वि० सं० १९५६ में भूरामल की आयु १० वर्ष की थी। छायानुवाद प्रवचनसार कुन्दकुन्द के उक्त ग्रन्थ का प्रतः इनका जन्म समय १९४८ वि० सं० है ऐसा सटीक
(प्रतिरूपक) श्लोक बड अनुवाद । 'जयोदय" 'दयोदय' 'वीरोदय" आदि ग्रन्थों से पता दयोदय की कथावस्तु लम्बों में बंटी है, धार्मिक चलता है। किन्तु मूल 'जयोदय' जो ब्रह्मचारी सूरजमल काव्यों की तरह इसका उद्देश्य भी कथा के बहाने हिंसा