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नागदेव जैन मन्दिर नगपुरा
० श्री नरेश कुमार पाठक
मध्यप्रदेश के दुर्ग जिले में राजनांदगांव मार्ग पर मौलि बनी हुई है। वितान में विद्याधर गन्धर्व, अभिषेक शिवनाथ नदी के दूसरे तट पर १६ कि०मी० की दूरी पर करते हुए गणराज, त्रिछत्र, दुन्दुभिक का अंकन है। दोनों नगपुरा ग्राम स्थित है। गांव के बीच एक नवीन कमरा हाथ की हथेलियां एक-दूसरे पर रखी है और पैर के नुमा मढिया बनी है, जिसमे बीच में पीपल के पेड का तलुओं से टिकी हुई हैं। ध्यान में लीन इस प्रतिमा का चबूतरा बना है, उसमें कुछ प्रतिमा स्थापित है, जिसकी काल लगभग ७वीं-८वीं शती ई० प्रतीत होता है । सम्पूर्ण स्थानीय लोगों द्वारा पूजा की जाती है। इस मन्दिर में प्रतिमा काफी आकर्षक एवं मांसलता लिए है', प्रतिमा सबसे अच्छी हालत में सुन्दर प्रतिमा तेइसवें तीर्थङ्कर का आकार ८०४६०४३० से.मी. है। पार्श्वनाथ की है, पुरातत्वविद श्री वेदप्रकाश नगावच का तीर्थडर-यहां से दो लांछन विहीन तीर्थङ्कर मत है, कि सम्भवतः इसके ऊपर नागफण होने के कारण प्रतिमा प्राप्त हुई हैं। प्रथम प्रतिमा तीर्थङ्कर प्रतिमा का ही ग्रामवासी इसे नागदेव मन्दिर कहते हैं। यह भी अर्धभाग जिसमें तीर्थहर कुन्तलित केश, लम्बे कर्णचाप से सम्भव है कि इस प्रतिमा के कारण ग्राम का नाम भी
अलंकृत है। बितान मे त्रिछत्र, दुन्दभिक अभिषेक करते नगपुरा हुआ है। दुर्ग जिला गजेटियर मे इसे कलचुरि
हुए गजराज, ऊपर पद्मासन में तीर्थकर प्रतिमा बैठी हुई कालीन जैन मन्दिर लिखा है। मन्दिर मे प्राप्त पुराव- है। जिनके ऊपर मालाधारी विद्याधर एवं पीछे प्रभामंडल शेषो से स्पष्ट होता है कि, यहाँ एक जैन मन्दिर रहा है। दोनों पाश्वं मे एक-एक कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन प्रतिमा होगा। मन्दिर ध्वस्त हो जाने के बाद मे श्रद्धालुओ ने का अकन है। प्रतिमा का आकार ४२४३०४७ मे.मी. इसी के ऊपर नवीन मन्दिर का निर्माण करवा दिया। है। दूसरी तीर्थकर प्रतिमा पर दो पद्मासन मे तीर्थङ्कर यहां मन्दिर के दोनो द्वार शाखा रखी है। जिन पर नदी बैठे हए अंकित है । प्रतिमा का आकार ४०४२५४१५ देवियो का अकन किया गया है। देवी एक हाथ में कलश से.मी. है। कालक्रम की दृष्टि से दोनों प्रतिमा ७वींलिए हुए है एवं मुकुट, चक्र, कुण्डल, हार, केयूर, बलय, वी शती ई. की प्रतीत होती है। मेखला व नुपुर पहने हुए है। नदी देवी के पार्श्व मे एक तीर्थडर प्रतिमा वितान-यहां से दो तीर्थङ्कर पुरुष प्रतिमा खडी है। नदी देवियों के अतिरिक्त चतुर्मुखी प्रतिमा वितान प्राप्त हुए है। प्रथम प्रतिमा तीर्थकर आसनस्थ गणेश, सर्प फण युक्त नाग प्रतिमा पर युक्त
प्रतिमा का वितान है, जिस पर छत्र, गणराज, विद्याधर प्रतिमा पादपीठ रखे हुए है। यहां पर जैन प्रतिमाओ की
युगल, प्रभामण्डल, आंशिक रूप से सुरक्षित है। ऊपर सख्या अधिक है जिसका विवरण निम्नानुसार है :- स्तम्भ युक्त गवाक्ष के अन्दर तीन पद्मासन मे तीन पपा
पार्श्वनाथ-तेइसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ पद्मासन मे सन मे तीर्थङ्कर प्रतिमा बैठी है। मध्य के तीर्थङ्कर के शेष आसन पर ध्यानस्थ बैठे हैं। अर्ध उन्मीलित नेत्र, नीचे पाच कायोत्सर्ग मे जिन प्रतिमा खड़ी हैं। दायें ओर सिर पर कुन्तलिस केश, लम्दे कर्ण चाप, कंधे तक फैली के तीर्थङ्कर के नीचे दो पद्मासन मे एव चार कायोत्सर्ग में हुई जटाये हैं। वक्ष पर श्रीवत्स चिह्न का सानुपातिक जिन प्रतिमा अकित है। बायो और तीर्थङ्कर प्रतिमा के अंकन हमा है। पादपीठ से सर्प का घुमावदार अकन नीचे एक पपासन मे एवं दो कायोत्सर्ग में तीर्थकर प्रतिमा तीर्थकर के पीछे होता हुआ सिर के ऊपर सप्तफण की
(शेष पृ० १८ पर)