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२६ व ४५, कि०२
अनेकान्त
ईसवी की है। पांचवी इसी काल खण्ड की विदिशा से आकार की प्रतिमा बलुआ पत्थर पर निर्मित है। तिथिप्राप्त हुई है। ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त सफेद बलुआ क्रम की दृष्टि से ११वी शती ईमवी की है। पत्थर पर निर्मित सर्वतोभद्रिका मति (सं० ऋ० ११५) मे स्तम्भ के चारो ओर सीर्थकर कायोत्सर्ग मे ध्यानस्थ खड़े
ग्वालियर दुर्ग से ही प्राप्त तीसरी सर्वतोभद्रिका
प्रतिमा' (स. क्र. २थ३) मे चारो कायोत्सर्ग मुद्रा में हुए हैं। इस प्रकार की प्रतिमाओ को किसी भी तरफ
तीर्थकर प्रतिमायें अकित हैं। प्रथम ओर प्रथम तीर्थंकर से देखा जाय तीर्थकर के ही दर्शन हो जाते है। जिससे
आदिनाथ प्रभामण्डल से सुशोभित कायोत्सर्ग मुद्रा मे खड़े मानव का कल्याण होता है। इसीलिए चारो तरफ मतियो
है। सिर लाइनदार केश विन्यास लम्ब कर्णचाप पादपीठ वाली प्रतिमा को सर्वोभद्रिका की सज्ञा दी गई है।
पर चक्र एव विपरीत दिशा मे मुख किए मिहो का अकन प्रस्तुत सर्वतोभद्रिका के चार तीर्थंकरों में से कवल आदि
है। दूसरी ओर कायोत्सर्ग मुद्रा मे तीर्थकर नेमिनाथ नाथ को कंधे पर फैले केशों मे एव पार्श्वनाथ को मस्तक
खडित अवस्था में प्रभामण्डल से सुशोभित है। दोनो ओर पर सप्त सगंफण नागमौलि से ही पहचाना जा सकता
विपरीत दिशा में मुख किए मिह बने है। चौथी ओर है। किन्तु सर्वतोभद्रिका प्रतिमाओं मे चार विशिष्ट
कुन्नलित केश, नागफण मौलि युक्त कायोत्सर्ग मे तीर्थकर तीथंकरों की ही प्रतिमाए अधिकतर बनाई जाती रही
पाश्र्वनाथ खड़े है, कानों मे लम्ब कर्णाचाप, नीचे विप. हैं। यथा ऋषमनाथ (आदिनाथ) नेमिनाथ, पार्श्वनाथ
रीत दिशा मे मुख किसे मिह और चक्र का आलेखन है। और महावीर स्वामी, अतएव इस मर्वतोभद्रिका प्रतिमा
१२०४५०५५० से. मी आकार की बलुआ पत्थर पर की अन्य दो प्रतिमाए तीर्थक र नेमिनाथ एवं महावीर की
निर्मित है । चौथी विदिशा से प्राप्त ६०x४०४४० मे. है। चारों प्रतिमाएं पच पादपीठ पर खडी है । मुख खंडित
मी. आकार की सफेद बलुआ पत्थर पर निर्मित (स. क्र. है एवं प्रभावली से अलकृत है। ८०४१०x४० से. मी.
१३१) यह प्रतिमा प्रतिमा, प्रतिमाक्रमांक ११५ के अनुआकार की प्रतिमा कच्छपधात कालीन शिल्पकला के अनुरूप है।
ग्वालियर दुर्ग से ही प्राप्त दूसरी सर्वतोभद्रिका प्रतिमा ग्वालियर से ही प्राप्त पांचवीं सर्वतोभद्रिका प्रतिमा (स. क्र. ३६२) मे चारो ओर कायोत्सर्ग मुद्रा मे तीर्थकर मे चारो तरफ पद्मासन मुद्रा मे तीर्थकर प्रतिमा अंकित प्रतिमाएं अकित हैं। प्रथम ओर कुन्तलित केश, प्रभामंडल, है। (सं. क्र. २६१) प्रथम ओर तीर्थकर आदिनाथ पाश्रीवत्स युक्त तीर्थकर आदिनाथ हैं, दोनों ओर चांवर. सन में में बैठे हुए है। सिर पर कुन्तलित केश, जिनकी पारियों एव यक्ष गोमुख यक्षी चक्रेश्वरी का आलेखन है। जटाएं स्कंध तक फैली हुई है। सिर के पीछे प्रभामण्डल दूसरी ओर तीर्थंकर नेमिनाथ कुन्तलित केश, कर्णचाप, बना है। पादपीठ पर सिंह एव चक्र का अंकन है। दूसरे श्रीवत्स युक्त है। दोनो ओर चांवरधारी व यक्ष गोमेध ओर पद्मासन में तीर्थकर नेमिनाथ बैठे हुए हैं। सिर पर यक्षी आबका अकित है। नीचे लेख श्रीवावट लिखा है। कुन्तलित केश, पीछे प्रभामण्डल है। पादपीठ पर विपतीसरी ओर कुन्तलित केश, कर्णचाप, प्रभामण्डल युक्त रीत दिशा मे मुख किये सिंह एव चक्र अकित है। तीसरी तीर्थकर शान्तिनाथ है। दोनों ओर चांवरधारी खड़े है। ओर तीथंकर महावीर पपासन में बैठे है, मुख खण्डित नीचे पादपीठ पर शान्तिनाथ का ध्वज लांछन मृग एव है। सिर के पीछे प्रभामण्डल है। वक्ष पर श्रीवत्स चिह्न, यम गरुण यक्षी महामानसी का अंकन है। नीचे लेख श्री पादपीठ पर विपरीत दिशा में मुख किये सिंहो का अकन सातिल श्री कलला लिखा हुआ है। चौथी ओर तीर्थकर है। चौथी तरफ तीर्थकर पाश्र्वनाथ पपासन में बैठे हुए पार्श्वनाथ सर्पकण, नागमौलि, कर्णचाप, श्रीवत्स से अलकृत है। सिर के ऊपर सप्तफण नाग मोलि है, पादपीठ पर है। दोनों ओर चांवरधारी खड़े हए है एवं यक्ष धरण पक्षी विपरीत दिशा मे मुख किये सिंह, चक्र एव पूजक अकित पद्मावती का आलेखन है। १३५४६५४५० से. मी. है। प्रतिमा के वितान मे चारो ओर मदग वादक,