Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 66
________________ श्री पं० देवीदास कृत चौबीसी-स्तुति श्री आदिनाथ स्तुति सवैया इकतोसा -सोभित उतंग जाको णिक (धनुष) से पांच अंग परम सुरंग पीतवर्ण अति भारी है। गून सो अथंग देखि लाजत अनंग कोटि कोटि सूर सोम जातें प्रभा अधिकारी है। दुविध प्रकार संग जाकै गो न सरवंग हरि के भजंग भी त्रसना निवारी है। होत मन पंकज सु सुनत अभंग जाको ऐ(औ)से नाभि नंदन को वंदना हमारी है ॥१॥ अजितनाथ स्तुति छप्पय-द्रव्य भाव नो कर्म कंजनासन समान हिम । जन्म जरा अरु मरन तिमिर छय करन भान जिम । सुख समुद्र गंभोर मार कांतार हुतासन । सकल दोष पावक प्रचण्ड झर मेघ विनासन । ज्ञाय(इ)क समस्त जग जगत गुरु भव्य पुरि(रु)ष तारन तरन । बंदी त्रिकाल सुत्रिसुद्धि कर अजित जिनेश्वर के चरन ॥२॥ श्री संभवनाथ स्तुति सवैया-- मोह कर्म छोनि कै सुपरम प्रवीन भये फटिक (स्फटिक)मनि भाजन मंझार जैसे नीर है। सुद्ध ज्ञान साहजिक सूरज प्रकासे हिये नही अनुतिमिर परोक्ष ताको पीर है। सकल पदारथ के परची प्रतक्ष्य देव तिन्हि तें जगत्रय के विषै न धोर वीर हैं। जयवंतू होहु अमे संभव जिनेश्वर जू जाक सुख दुख कोन करता सरीर हे ॥३॥ श्री अभिनंदन स्तुति सवैया तेईसा-चार प्रकार महागुन सार करे तिन्हि घासन कर्म निकंदन । धर्म मयी उपदेश सुन तसु सोतल होत हृदय जिम चन्दन । इन्द्र नरेन्द्र धरणेन्द्र जती सब लोक पतो सूकर पद वंदन । घालि (डालि)गर (गले )तिन्हि की गुनमाल त्रिसुद्ध त्रिकाल नमौ अभिनंदन ॥४॥ _ श्री सुमतिनाथ स्तुति सवैया ३१-- मोह को मरम छेदि सहज स्वरूप वेदि तज्यो सब खेद सुख कारन मुकति के । सुभासुभ कर्म मल धोइ वीतराग भये सुराल)झे सुदुखतें निदान चार गति के । क्षायक समूह ज्ञान ज्ञायक समस्त लोक नायक सो सुरग उरग नरपति के। नमो कर जोरि सीसु नाइ(य) सो समतिनाथ मेरे हृदय हूजै आनि करता समति के ॥५॥ श्री पद्मप्रभ स्तुति सवैवा ३२-विनाशीक जगत जब लोकि जे उदास भये छोडि सब रंग हो अभंग वनु लियो है। जोरि पद पद्म अडोल महा आत्मीक जहां नासाग्र हो समग्र ध्यान दियो है। हिरदै पद्म जाके विषै मन राख्यो थंभि छपद स्वरूप हो अतीन्द्रिय रस पियो है। जेई पद्म प्रभु जिनेस जू ने पाइ निज आपन लब्धि विभाव दूरि कियो है ॥६॥ श्री स्व(स)पार्श्वनाथ स्तुति सवैया ३१-विनसें विभाव जाही छिन में असद्ध रूप ताही छिन सहज स्वरूप तिन्हि करखे (षे)। मति सु(श्रु)ति आदि दै(छ) सु दाह दुख दूरि भयो हृदै तास सुद्ध आत्मीक जल वरषे ।

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