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परमागमस्य बीजं निषिबजात्पन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ।। वोर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण संवत् २५१८, वि० सं० २०४६
वर्ष ४५
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जुलाई-सितम्बर
१९६२
किरण ३
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उपदेशी-पद मत राचो धो-धारी। भव रंग-थंम सम जानके, मत राची धी-धारो। जन्द्रजाल को ख्याल मोह ठग विभ्रम पास पसारी॥ चहंगति विपतिमयी जामें जन, भ्रमत भरत दुख भारी। रामा मा, मा बामा, सुत पितु, सुता श्वसा, अवतारो॥ को अचंभ जहाँ आप आप के पुत्रदशा विस्तारो। घोर नरक दुख ओर न छोर न लेश न सुख विस्तारी।। सुर नर प्रचुर विषय जुर जारे, को सुखिया संसारी। मंडल है अखंडल छिन में, नप कृमि, सधन भिखारी। जा सुत-विरह मरी ह बाधिनि, ता सुत देह विवारी॥ शिश न हिताहित ज्ञान, तरुन उर मदन बहन परमारी। वद्ध भये विकलंगो थाये, कोन दशा सुखकारो।। यो असार लख छार मव्य भट भये मोख-मग चारी। यातें होह उदास 'दौल' अब, भज जिनपति जगतारी॥