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२०, वर्ष ४५, कि० २
अनेकान्त
भी लिखी है। इसका विषय कृष्ण-बलभद्र का जीवन है। गालउडा' नामक स्थान पर "विशाल भरत मन्दिर __ 'कंस वहाँ' नामक प्राकृत काव्य रामपाणिवाद ने रचा (कोविल)' के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है। है। कवि का समय १८वीं सदी है। यह महाराष्ट्री प्राकृत इसके एक श्लोक का आशय यह है कि कोक (सन्देशवाहक) में निबद्ध है। स्पष्ट है कि यह कंस के वध से सम्बन्धित भरत-मन्दिर मे न जाए क्योंकि ब्राह्मण उसमें प्रवेश नही है। यह एक सुन्दर तथा प्रसिद्ध रचना मानी जाती है। करते हैं। इसी आधार पर अधिकांश विद्वानों का यह मत
उपर्युक्त कवि ने एक जोर प्राकृत काव्य 'उसानिरुद्ध' है कि यह "जैन मनिरर" था और मूर्ति "ऋषभ पुत्र नाम से लिखा है। इसमे उषा और अनिरुद्ध के विवाह का भरत" की सिद्ध होती है। यद्यपि ब्राह्मण परम्परा इसे वर्णन है। भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है और रचना वररुचि राम के भाई भरत को मूर्ति बताती है। इसी पुस्तक म के प्राकृत व्याकरण के नियमों का अनुसरण करती है। 'हरिगुलकुडा' का भरत मन्दिर देखिए । नायक-नायिका
चंपूकाव्य-मे भी प्राकृत का प्रयोग परिलक्षित बिछुड़ जाते है और नायक उपर्युक्त पक्षी के माध्यम से होता है। इस झीर्षक के अन्तर्गत तेरहवी सदी की दो- अपना सन्देश भेजता है। यह कति चौदहवी सदी को तीन रचनाएं आती है-(१) उण्णियाच्चीचरितम् - अनुमानित की जाती है । ए० श्रीधर मेनन के अनुसारइसमें गधर्व और एक सुन्दरी का कथानक है । (२) उष्ण- "The koka sandesam was another “Sandesh निरुतीवि चरितम-- इसकी नायिका एक देवदासी है, Kavya" compoped about 1400 A.D." इन्द्र उसके यहां जाता है और अनेक प्रेमियो की भीड़ भक्ति काव्य-प्राकृत से सम्बन्धित दो भक्ति काव्य देखता है। (३) दामोदर चाक्यार की कृति उणियाति. है-(१) अनतपुरवर्णनम् (त्रिवेन्द्रम के मन्दिरों का वर्णन) चरितम मे एक राजकुमार से उत्पन्न एक नतंकी को पुत्री (२) कालिनाटकम्-भद्रकाली और असुरों का कथानक। को कथा है। उसके मधुर गीतो से चन्द्रमा भी आकर्षित
इसमे कुछ अन्यत्र अनुपलब्ध प्राकृत शब्द जैसे कल्ल हो जाता है।
(नशा), प्राकृत रूप कल्ल (शराब) आदि पाए गए हैं। सन्देश काव्य-कालिदास ने जिस प्रकार एक यह कति भी चौदहवी सदी की जान पड़ती है। विरही यक्ष का सन्देश अलकापुरी स्थित उसकी प्रिया को
नाटक-का एक प्रकार सट्टक है जिसमें सभी पात्र भेजने के लिए मेघ को साधन बनाकर 'मेघदूत' नामक
प्राकृत बोलते हैं। रुद्रदास (तेरहवी सदी) ने चंडलेहा ललित काव्य की रचना की है। उसी शैलो मे करल के
नामक एक इस कोटि नाटक लिखा है । हा० एन. उपाध्ये मलयाली कवियों ने अनेक सन्देश काव्यों का सृजन किया ने इसका संपादन भी किया है। है। इनमे भी प्राकृत शब्दों और प्राकृत व्याकरण के तुळ्ळण-केरल की एक हास्यरसपूर्ण नृत्य-विधा है। नियमों का सयोजन हैं। इनका सक्षिप्त परिचय इस इसके गीत (तुळळण पाटु-गीत) कहलाते है। इनमे भी प्रकार है
प्राकृत का प्रयोग देखा जाता है। कवि कंचन नपियार ___ 'भगसन्देश' नामक एक ताडपत्रीय ग्रन्थ डा० जोसफ (१८वीं सदी) इसके लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने 'पात्रचरितम्' ने ढढ निकाला है। उसके कवि और काल अज्ञात हैं। नाम रचना के एक ही स्तोत्र मे १६ पंक्तियां अर्धमागधी मे किन्तु प्राकत के दो व्याकरणकारों त्रिविक्रम और वररुचि लिखी हैं। उन्होने यह मत व्यक्त किया है कि अक्षर तो केवल की कृतियों से उद्धरण दिए गए हैं। माया के कारण नायक ५१ है और व्याकरण भी केवल दो ही हैं 'प्राकृत व संस्कृत'। के विरह का इसमे सुन्दर चित्रण है।
इस कवि के संबंध मे श्रीदेव ने अपनी पुस्तक 'मलयालम पन्द्रहवीं सदी का एक सन्देश काव्य 'उणिनिलि- साहित्य' मे लिखा है, "नदियार ने सस्कृत और प्राकृत दोनों सन्देशम्' है । वह भी इसी प्रकार का है।
भाषाओं में अनेक ग्रंथ लिखे हैं। उनके द्वारा रचित प्राकृत कोकसन्देश-एक महत्वपूर्ण सृजन है । इसके केवल व्याकरण बहुत प्रसिद्ध है।" इस हास्य कवि ने हिन्दी के भी १७ श्लोक ही उपलब्ध हो पाए है किन्तु केरल के 'रि- छन्द लिखे हैं।