Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 50
________________ १२, बर्ष ४५, कि.. अनेकान्त उन्होंने अपने तीनों ग्रन्थों की प्रशस्तियों में आशाधर का नाम बड़े पादर और सम्मान के साथ लिया है। भव्यजनकण्ठाभरण के-- "सूक्त्येव तेषां भवभीरवों ये गृहाश्रमस्याश्चरितात्मधर्माः । त एव शेषाश्रमिणां सहाय्या धन्याः स्युराशाघरसूरिमुख्याः ॥" (क्रमशः) -निदेशक, प्राकृत एवं जन विद्या शोधप्रबन्ध संग्रहालय, खतौली (उ० प्र०) सन्दर्भ १. जीवन्धर चम्प भारतीय ज्ञानपीठ १/ १८. यशस्तिलक चम्प, उत्तराखण्ड पृ. ४८१ । २. काव्यादर्श चौखम्बा १/३१ १६. वही, ग्रन्थ परिचय पृ. २३ । ३. साहित्य दर्पण चौखम्बा ६/३३६ २०. नीतिवाक्यामृत, प्रशस्ति । ४. नृसिंह उम्पू चौखम्बा भूमिका २१. यशस्तिलक चम्पू : उत्थानिका । ५. काव्यानुशासन निर्णयसागर ८/ २२. वही चतुर्थ आश्वास, पृ. ६५। ६. मरुधर केशरी अभिनदन अथ, व्यावर पृ. २७६ २३. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. ४१२ पादटिप्पण । ७ परुदेव चम्प भारतीय ज्ञानपीठ भूमिका २४. महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन, ज्ञानपीठ. ८. चम्पकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक पृ. १५-१८। अध्ययन : त्रिपाठी चौखम्बा पृ. ४६ । २५. संस्कृत साहित्य का इतिहास : अनु० मंगलदेव शास्त्री, ६. संस्कृत साहित्य का इतिहास : वाचस्पति गैरोला, मोतीलाल बनारसीदास पृ. ४१६ । चौखम्बा, पृ. ६११। २६. धर्मशर्माभ्युदय १६/१०१-१०२ श्लोकों से निर्मित १०. संस्कृत साहित्य की रूपरेखा, व्यास एव पाण्डेय, छकबध से निर्गत देखे धर्मशर्माभ्युदय, ज्ञानपीठ कानपुर, पृ. ६११। पृ. २२६ । ११. जैन साहित्य का बहद् इतिहास पार्श्वनाथ विद्याश्रम, २७. धर्मशर्माभ्युदय, प्रशस्ति । वाराणसी, भाग ७, पृ.८। २८. महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन पृ. १०। १२. वही पृ. ११ । २६. वही पृ. १२। १३. वही पृ.६। ३०. कर्पूर मंजरी, साहित्य भण्डार मेरठ, प्रथम जवनिका १४. यशस्तिलक चम्प : महावीर ग्रन्थमाला वाराणसी ३१. हर्ष चरित " " " ३/१२ ८/४६२ तथा नीतिवाक्यामृत, ज्ञानपीठ, ग्रन्थकर्तुः ३२. महाकवि हरिचन्द : एक अनुशीलन पृ. १३ । प्रशस्ति । ३३. वही पृ. १३। १५. उपासकाध्ययन, ज्ञानपीठ, प्रस्तावना पृ. १३ । ३४. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. १४३ । १६. जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, बम्बई, ३५. वही पृ. १४३ । पृ.६१। ३६. जैन साहित्य का वृहद इतिहास, भाग ६, पृ. १४॥ १७. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, डा. ३७. भव्यजन कण्ठाभरण, सोलापुर, पद्य २३६ । नेमिचन्द्र शास्त्री, सागर, भाग ३, पृ.८८ ।

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