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साह भी गौवराज पापड़ीवाल
- २१ जिनचन्द्र का नामोल्लेख है, ये मूर्तियां छतरपुर के जैन भ० जिनचन्द्र देव शाह जीवराज पापड़ीवाल वीतरागाय मन्दिरों में विद्यमान हैं ये मूर्तियां मूलरूप से छतरपुर की ...."प्रणमत । कम हैं पर आसपास के गांवों से जो उजड़ गये हैं लाकर (8) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पपासन १६" उ. यहा के मन्दिरों में विराजमान कर दी गई हों। कुछ १०" चौड़ी सं. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी ३ मूलसंघे भ. मतियों मे स १५४८ के पहले का संवत् उत्कीर्ण है इससे श्री जिनचन्द्र देव जीवराज पापड़ोवाल ।। ऐसा लगता है कि जब ये मूर्तियां बनीं उसी वर्ष का संवत् (१०) भ० चन्द्रप्रभ श्वेत पाषाण पपासन १५.५" उत्कीर्ण कर दिया गया हो क्योंकि लक्षाधिक जिनविम्बों उ. ११.५" चोडी सं. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी ३ श्री का निर्माण एक दो नहीं अपितु दशों वर्षों में हो पाया मूलसघे भ० जिन चन्द्र देव तम्य जीवराज शिष्य दीवी होगा पर सामूहिक प्रतिष्ठा और गजरथ महोत्सव निश्चय जनत प्रणमत शुभं भवतु नित्यं प्रणमत । ही अक्षय तृतीया सं. ०५४८ में हुआ था। कुछ मूनि लेख - (११) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १३.५"
(१) भ० पानाथ श्वेत पाषाण पपासन '३' ऊँची उ. ८.५" चोडी सं. १५४६ वर्षे बैशाख सुदी ५ मलसंपे .." चौडी सं. १५४३ वर्षे बैशाख सुदी ३ मूल संघे भ० भ० श्री जिनचन्द्र देव शाह जीवराज पापड़ीवाल नयस श्री जिन चन्द्र शाह जीवराज पापडीवाल नित्यं प्रणमते। रामासुर मम श्रीरस्तु । तिसमध्ये सह सुग सा श्री।
(१२) भ. पाश्र्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १५" उ. (२) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १६" उ. १०" चौड़ी सं. १४८० वर्ष वैशाख सुदी ३ श्री मूलसंधे १... चौडी स० १५४३ बैशाख सूदी ३ श्री मल सधे भ० श्री चन्द्रदेव शाह जीवराज पापडीवाल नित्यं प्रणमत भ० श्री जिन चन्द्र जीवराज पापड़ीवाल वस प्रणमत सुरम सरमम श्री राजा जी स्योसिंह रावल लसहार मुद्राम। सरमने श्री रजा जिए संघ.."
नोट : --- इसमें स. १४८० गलत है यह सं. १५४८ होना (३) श्री भ० चन्द्रप्रभ श्वेत पाषाण पद्मासन ३.१" चाहिए। लिपिकार प्रथम अक' के आगे ५ उ. ६.५" चौड़ी सं. १५४६ बैशाख सुदी ३ मूनसंघे भ. लिखना भल गया जिससे अन्तिम अंक शुन्य जिनचन्द्रदेव शाह जीवराज पापडीवाल ।
जोड़ दिया। (४) भ. पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पपासन १३" उ. (१३) भ० अजितनाथ श्वेत पाषाण पपासन १." १." चौड़ी सं. १५४५ वर्षे बैशाख सुदी ३ शुभ जिनराज उ. " चौडी स. १५४८ वर्षे मूलसघे....."भ० जिनचन्द्र मानन्द वा जिनचन्द्र जीवराज।
और जीवराज पापड़ीवाल त्रुटित अश में होना चाहिए। (५) भ० पाश्र्वनाथ श्वेत पाषाण ४०" उ. २८” (१४) भ. पाश्र्वनाथ श्याम पाषाण पचासन " उ. चौडी स. १५४८ बैशाख सुदो ३ भ. श्री जिनचन्द्र देव ५" चौड़ी स. १५४८ वर्षे .. त्रुटित अश वही भ० शाह जीवराज पापड़ीवाल मुरामा सोसिंघ राजा जी। जिनचन्द और जीवराज का उल्लेख होगा।
(६) भ० चन्द्रप्रभु श्वेत पाषाण पद्मासन १७" उ. (१५) भ० चन्द्रप्रभु श्वेत पाषाण पद्मासन १०" उ. १७" चौडी सं. १५४५ बैशाख सुदी ३ श्री मूल सघं भ० " चौडी स. १५४८ वर्षे.....टित अश में उपरोक्त श्री जिनचन्द्र देव शाह जीवराज पापड़ोवाल नित्य प्रणमते नाम होंगे। शर्म श्री रासी जाससघ ।
(१६) भ० अरहनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन ११" (७) भ० अजितनाथ श्वेत पाषाण पपासन १५" उ. उ. " चौड़ी स. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी जीवराज...." १२" चौड़ी सं. १५४८ वर्षे बैशाख सुदी ३ भ० श्री जिन- (१७) भ. मुनि सुव्रतनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन " चन्द्र देव... ऋटित अश मे पापड़ीवाल का नाम है। उ. ६" चौड़ो स. १५४८ वर्षे बैशाख सुदो ३ ....."टित
(4) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पपासन ३.२५" अश में वही नाम होगे। उ.१०" चौड़ी सं. १५४८ बैशाख सुदी ३ श्री मूलसघे (१८) भ० पार्श्वनाथ श्वेत पाषाण पद्मासन १०.५"