Book Title: Anekant 1992 Book 45 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 25
________________ १७वीं शताब्दी के महान् कवि कविवर बुलाकीदास एक परिचय उषा जैन, एम. ए., रिसर्च स्कालर जैन कवियों द्वारा निबद्ध हिन्दी साहित्य इतना अधिक हो। इनके पूर्वज बयाना रहते थे। लेकिन रोजी-रोटी के विशाल एवं विस्तृन है कि उसकी जानकारी प्राप्त करना लिए आगरा आकर रहने लगे थे। बुलाकीदास के पिता भी कठिन लगता है । यद्यपि विगत ४०-५० वर्षों मे जंन का नाम नन्दलाल था और उनकी मां थी जनुनदे। हिन्दी साहित्य को प्रकाश में लाने के बहुत प्रयास हुए हैं बुलाकीदास का जन्म कब हुआ इसका उनकी रचनाओं में और डा. कामताप्रसाद जैन, पं० नाथूराम प्रेमी, डा० कोई उल्लेख नही मिलता लेकिन वे महाकवि बनारसीनेमीचन्द्र शास्त्री, प० परमानन्द शास्त्री देहली एव डा० दास की मत्यु के पश्चात् प्रागरा मे उत्पन्न हुए। उनके कस्तूरचन्द जी कासलीवाल, जयपुर ने हिन्दी जैन कवियों समय में आगरा जैन विद्वानो का केन्द्र था। और उसी द्वारा निबद्ध हिन्दी साहित्य को प्रकाश में लाने को महत्व- साहित्यिक वातावरणमें कविका लालन-पालन हुआ। उनकी पूर्ण कार्य किया। डा० कासलीवाल साहब तो जैन कवियो माता जैनुलदे स्वाध्यायणीना महिला थी इसलिए उनका द्वाग निबद्ध हिन्दी साहित्य को २० भागो मे प्रकाश में अवश्य ही किसी न किसी विद्वान से सम्पर्क रहा होगा। प्रकाश लाने का एक भागीरथ प्रयत्न कर रहे है जिसके बुलाकीदास का बचपन का नाम बुनचन्द था। कुछ १० भाग प्रकाशित हो चुके हैं। इसी कार्य के लिए उन्होने बड़े होने के पश्चात अपनी माता के साथ आगरा छोड़ श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी नामक संस्था की स्थापना की दिल्ली आकर रहने लगे। यहीं पर कवि ने गोपाचल के और अब तक १०० से अधिक हिन्दी जैन कवियों पर १० (ग्वालियर) निवासी पं० अरुण रत्न के पास जैन ग्रन्थों भागो मे विस्तृत समीक्षा की है। इस प्रकार का यह पहला का विशेष अध्ययन किया। बुलचन्द देहली मे आकर प्रयास है फिर भी अभी तक जैन कवियो को इतनी अधिक बुलाकीदास कहलाने लगे और उनका यह नया नाम ही रचनाएं प्रकाशित एव अचचित हैं जिनका प्रकाशन बहुत सर्वत्र प्रसिद्ध हो गया। हिन्दी मे काव्य रचना करने की ही आवश्यक है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री महावीर उनकी रुचि जागृत हुई जिसकी प्रेरणा उन्हें अपनी मां से ग्रन्थ अकादमी के माध्यम से हिन्दी मे शोध करने वाले प्राप्त हुई। कवि ने सर्व प्रथम संवत् १७४७ में अपनी मुझ जैसी शोधाथियो को विशेष लाभ हो सकेगा। प्रथम कृति 'प्रश्नोत्तर श्रावकाचार" लिखने का श्रेय मैं विगत दो वर्षों से १ वी-७वी शताब्दी के हिन्दी प्राप्त किया । यह कृति भट्टारक सकलकीर्ति के "प्रश्नोत्तर जैन कवियो पर शोध कार्य कर रही हू मुझे शोध के क्षेत्र श्रावकाचार" का हिन्दी पद्यानुवाद के रूप में है। जैन में इन दो शताब्दियो में होने वाले प्रयासो, कवियो का कवियों ने सस्कृत व प्राकृत को सभी मौलिक कुतियों का परिचय प्राप्त हुआ और उनकी महत्वपूर्ण कृतियो को हिन्दी में पद्यानुवाद करने का जो मार्ग अपनाया वह पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत लेख मे मैं एक ऐसे बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और हिन्दी के प्रचार प्रसार कवि का परिचय देने का प्रयास कर रही हू जिसकी कृतियों में उनका सर्वाधिक योगदान रहा। प्रश्नोत्तर श्रावकाने मुझे अतीव प्रभावित किया तथा उसने हिन्दी साहित्य चार की रचना जब समाप्त हुई तो उनकी मां जैनुलदे ने को अत्यधिक महत्वपूर्ण सामग्री भेंट की। ऐसे कवि का उसे आदि से अन्त तक सुना और अपने लाडले पुत्र को नाम है कविवर बुलाकीदास जिसको काव्य रचना करने आशीर्वाद दिया और उसे मानव जीवन की सार्थक करने की प्रेरणा स्वय उनकी माता श्री जैनुलदे ने दी थी। इस वाला कार्य बतल.या। प्रश्नोत्तर श्रावकाचार का सं० प्रकार की एक भी महिला का नाम नही मिलता जिसने १७४७ बैशाख सुदी द्वितीया बुधवार को जहानाबाद अपने पुत्र को काव्य रचना करने की ओर प्रेरित किया (दिल्ली) एव पानीपत (हरियाणा) में पूर्ण किया जिसका

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