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पंचम अध्याय.
५२१ से. ___पिंडशुद्धि अर्थात् थाहारशुद्धिका वर्णन, बाहारसंबंधी उद्गमादिक दोष, बक्षीस अंतराय-यह
वर्णन है। छठा अध्याय.
दश धर्म, क्रोधादि कार्योंसे होनेवाली हानि, मिधादि आठ शुद्धि, बारह अनुप्रथा, बाईस पर
पहों का वर्णन किया है। सातवां अध्याय...
५९ से. तपका वर्णन, सानादिके विनय, सल्लेखना का सरूप है। आठवां अध्याय.
७३१ से. ___ आवश्यकों का वर्णन, आसनोंके मेद, वंदनादिके दोष इत्यादि वर्णन है। नवम अध्याय.
८. से. भ्यान तथा स्वाध्यायके समयादिका वर्णन, नित्य तथा आष्टानिकादि नैमित्रिक क्रियाओंका के स्वरूप, भूमिशयनादि मूल गुणोंका स्वरूप यह नौवें अध्यायमें कहा है।
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