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अहिंसा के अछूते पहलु कर लाया गया, वह था कवि अहमद। तैमूरलंग ने पूछा-तुम तो कवि हो, मूल्यांकन करना जानते हो, बताओ, जिन दो गुलामों को फांसी दी है उनका मूल्य कितना ? कवि अहमद बोला—पांच-पांच सौ अशफियां। तैमूरलंग मूड में था, आगे पूछ बैठा, बताओ, मेरा मूल्य कितना ? अब इस बात का ऐसे क्रूर शासक के सामने उत्तर देना कठिन था। पर वह भी कवि था, कवि-हृदय था, सत्य को खोजने का प्रयत्न करने वाला था। उसने कहा-आपका मूल्य है केवल पचीस अशफियां । शासक यह सुनकर क्रोध से जल उठा । गुलाम का मूल्य तो पांच सौ अशफियां और मेरा मूल्य मात्र पचीस अफियां ! जलभुन गया, पर करे क्या ? कवि से कहा, इतने बड़े कवि बने हो पर इतना भी नहीं जानते कि पचीस अफियों का मूल्य तो मेरी पोशाक का होगा। कवि ने कहा, मैंने बिलकुल ठीक कहा है । आपकी पोशाक का मूल्य ही मैंने बताया है। तैमूर ने पूछा----मेरा मूल्य क्या कुछ भी नहीं है ? कवि ने कहा, बिलकुल नहीं। जो आदमी क्रूर है, जिसमें दया नहीं और जो किसी को अपने समान समझता नहीं, जिसमें कोई सहानुभूति की भावना नहीं, जिसमें कोई न्याय नहीं, उस आदमी का दुनियां में कोई मूल्य नहीं होता। आप निश्चित मानें मैंने आपका मूल्य जीरो आंका है, आपकी पोशाक का मूल्य ही पचीस अशफियां आंका है । आपका कोई मूल्य नहीं है। पारमार्थिक अहिंसा
हमारा मूल्यांकन का एक दृष्टिकोण है । जो व्यक्ति परमार्थ की भूमिका पर मूल्य आंकता है वह बाहरी बात का मूल्य बहुत कम आंकता है। उसकी दृष्टि में मूल्य होता है अन्तर् की वृत्तियों का। वह देखता है कि व्यक्ति की आन्तरिक वृत्तियां कैसी हैं ? उसकी भूमिका कैसी है ? उसने किस भूमिका पर काम शुरू किया है ? अहिसा के बारे में हम बहुत कम सोचते हैं, बात बहुत करते हैं। इसलिए करते हैं कि अहिंसा के बिना समाज सुख और शांति से जी नहीं सकता। समाज को जरूरत है अहिंसा की, इसलिए कि वह सुख से जी सके । समाज को जरूरत है अहिंसा की, इसलिए कि वह शांति के साथ जी सके, स्वस्थ रह सके । व्यावहारिक अहिंसा के आधार पर हमने इस जरूरत का अनुभव किया किन्तु हमारी एक भूल रह गई। हमने पारमार्थिक अहिंसा की ओर बहुत कम ध्यान दिया। आत्मा की समानानुभूति और समानता के बिन्दु का कम से कम हमने स्पर्श किया है । दूसरे पक्ष को भी देखें
प्रेक्षा-ध्यान का एक सूत्र है-आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने का। साधक को कहा गया-'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं"- आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। इसका अर्थ क्या है ? यह परमार्थ की ओर संकेत करता है । केवल
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