Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 12
________________ अहिंसा के अछूते पहलु सकती। यह व्यावहारिक अहिंसा है। यानी अहिंसा का एक व्यावहारिक प्रयोग है, पारमार्थिक नहीं । व्यावहारिक अहिंसा के पीछे स्वार्थ जुड़ा हुआ होता है। उसमें स्वार्थ निहित होता है। स्वार्थ पर आधारित अहिसा वास्तविक नहीं होती । एक दूसरे को नहीं सताना, एक दूसरे को चोट नहीं पहुंचाना और एक दूसरे को नहीं नकारना-यह स्वार्थ पर आधारित होता है। यह वास्तविक अहिंसा नहीं होती, किंतु व्यावहारिक कही जा सकती है । यह हमारे संबंधो पर निर्भर करती है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, इसका यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि वह अहिंसक समाज का समर्थक है। अहिंसा को उसने मात्र अपनी उपयोगिता के स्तर पर स्वीकार किया है । जब काम प्रबल होता है, अहं प्रबल होता है, हिंसा उसके लिए वर्जनीय नहीं रहती। व्यावहारिक अहिंसा भगवान ऋषभ के दो पुत्र भरत और बाहुबली का अहं टकराया और महायुद्ध शुरू हो गया। भरत ने दूत भेजा कि बाहुबली उसकी आज्ञा स्वीकार करे । दूत गया और भरत का निवेदन सामने रखा। बाहुबली का अहं जाग उठा। उसने कहा--- मेरी भुजा में प्रबल पराक्रम है। मैं किसी की आज्ञा को शिरोधार्य नहीं करूंगा। उसने दूत की बात ठुकरा दी और युद्ध शुरू हो गया। लंबा युद्ध भाई-भाई में चला। यह क्यों हुआ? अहिंसा का संबंध नहीं था। भाई का संबंध अहिंसा का संबंध नहीं होता। वह स्वार्थ, उपयोगिता और काम-प्रेरित संबंध होता है । उसके पीछे ममत्व की प्रेरणा थी। उसके पीछे प्रेरणा थी उपयोगिता की। जैसे ही ममत्व और उपयोगिता में टकराहट आई, अहिंसा हिंसा में बदल गई । व्यावहारिक अहिंसा उपयोगिता या स्वार्थप्रेरित अहिंसा है। इस स्थिति में यह प्रश्न पैदा होता है कि मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हुआ, मुझे लगता है-यह प्रश्न ही मूलत: सही नहीं है। यह एक भ्रान्त धारणा से उपजा हुआ प्रश्न है। यदि हमारी धारणा सही हो तो यह प्रश्न पैदा ही नहीं होता। आज के सारे समाज की जीवन-शैली व्यावहारिक अहिंसा से प्रभावित जीवन-शैली है । इसीलिए जब कभी हिंसा भड़क उठती है एक समाज में, एक जाति में, एक संप्रदाय में और एक परिवार में तब जहां-तहां हिंसा की चिनगारियां उछलती नजर आती हैं। हमारे जीवन की शैली जब तक व्यावहारिक अहिंसा से प्रभावित रहेगी तब तक ऐसा होता रहेगा। अहिंसा पर अनुसंधान करने वाले लोगों ने इस प्रश्न को उपस्थित किया है। मुझे लगता है, उन्होंने परमार्थ की अहिंसा को समझा नहीं है । केवल व्यावहारिक अहिंसा के आधार पर यह प्रश्न पैदा किया और यह मान लिया कि समाज का 'विकास अहिंसा के आधार पर हुआ है । अगर अहिंसा नहीं होती तो मिलजुल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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