Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ हमारी जीवन-शैली और अहिंसा कर नहीं रहते । यह बात ठीक है कि मिलजुल कर रहना भी एक विशेष प्रयोग है । ऐसे भी प्राणी हैं जो मिलजुल कर रहना नहीं जानते, प्रयोग करना नहीं जानते । हिंस्र पशु कभी अपना समाज नहीं बनाने तो दूसरा वर्ग ऐसा है, जो मिलजुल कर रहना जानता है और अपना समाज बना लेता है, एक दूसरे का सहयोग करता है । यह अहिंसा की भूमिका नहीं है । हिंसा का भाव आकस्मिक नहीं मनुष्य में हिंसा का जन्म हुआ है । वह आकस्मिक नहीं है । उसके पीछे अनेक कारण हैं । जब तक पारमार्थिक अहिंसा का विकास समाज में नहीं होगा, हमारी जीवन-शैली पारमार्थिक अहिंसा, वास्तविक अहिंसा से प्रभावित नहीं होगी तब तक समाज में चल रही हिंसा को कम नहीं किया जा सकेगा । हमें इस सत्य को समझना है कि पारमार्थिक अहिंसा क्या है ? वास्तविक अहिंसा क्या है जिससे हम जीवन की शैली को प्रभावित करना चाहते हैं और वर्तमान जीवन की शैली को बदलना चाहते हैं ? पारमार्थिक अहिंसा का आधार है - आत्मा । सब आत्माओं की समानता । जैसी मेरी आत्मा वैसी ही हर प्राणी की आत्मा । न केवल मनुष्य की आत्मा, पर हर प्राणी की आत्मा वैसी ही है जैसी की मेरी है । यह आत्मा की समानता का सिद्धांत ही पारमार्थिक अहिंसा का आधार बन सकता है। जैसी सुख-दुःख की अनुभूति मेरी है वैसी ही सब प्राणियों की है । इसलिए मुझे किसी भी प्राणी को दु:ख नहीं देना चाहिए, सताना नहीं चाहिए, किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहिए और किसी को मारना नहीं चाहिए । यह चेतना जब तक नहीं जाग जाती, तब तक पारमार्थिक अहिंसा का विकास नहीं होता। जब तक उस अहिंसा का विकास नहीं होता तब तक समाज में जो छीना-झपटी, लूट-खसोट, मार-धाड़ चल रही है, एक दूसरे पर प्रहार और कष्ट देने का व्यवहार चल रहा है, उसे बंद तो किया ही नहीं जा सकता, कम भी नहीं किया जा सकता । मूल्यांकन का दृष्टिकोण तैमूरलंग क्रूर शासक था । वह अत्याचारी था । उसे विश्वास था कि मैं अपनी क्रूरता के द्वारा, कठोर दण्ड के द्वारा प्रजा को बदल दूंगा । उसने इस सचाई को नहीं समझा कि आदमी कठोरता से नहीं बदलता | जब तक उसका हृदय नहीं बदल जाता, जब तक मस्तिष्कीय परिवर्तन नहीं होता, तब तक वह बदलता नहीं है । उसका हिंसा में विश्वास था, क्रूरता में विश्वास था, दंड में विश्वास था और उसने वैसे ही प्रयोग किए। बहुत लोगों को सताया। मारना मामूली बात थी उसके लिए । एक बार उसके सामने दो लामों को पेश किया गया। मौत की सजा सुना दी । तीसरा जो बंदी बना - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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