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जाहिर उद्घोषणा. ( मुंहपत्ति हाथपत्ति का विचार) १०. ढूंढिये कहते हैं कि 'मुंहपर बांधे सो मुंहपत्ति और हाथमें रक्खे सो हाथपत्ति' ऐसी ऐसी कुयुक्तिये लगाकर भोले जीवों को भ्रम में डालतेहैं सोभी उत्सूत्र प्ररूपणा ही है क्योंकि देखोः-रजको दूर करने के काममें आनेवालेको रजोहरण कहतेहैं उसको बगलमें रक्खे तो भी रजोहरण ही कहेंगे परंतु बगल पुंछ कभी नहीं कहसकते. वैसेही मुंहआगे रखनेके वस्त्रको हाथमें रखनेसे भी हाथपत्ति कभी नहीं कह सकते किंतु मुंहपत्ति ही कहेंगे । ढूंढिये भी आहार करने के समय मुंहपत्तिको गोडे पर या आसन पर रखतेहैं तो भी उसको मुंहपत्ति ही कहतेहैं परंतु गोडापट्टी या आसनपट्टी नहींकहते इसी तरहसे मुंहपत्तिको हाथमें रखने से भी हाथपत्ति कभी नहीं कहसकते किंतु मुंहपत्ति ही कहेंगे । और नैगम-संग्रह-व्यवहार नय के मतसे साधू मुंहपत्तिके लिये वस्त्रकी याचना करनेको जावे या याचना करे तथा वस्त्र ले, उसको भी मुंहपत्ति कहतेहैं उस मुंहपत्तिको उपयोग पूर्वक मुंहआगे रखकर यत्ना से बोलने वालों को हाथपत्ति कहकर मुंहपत्तिका निषेध करते हैं सो सर्वज्ञ शासन में नयवादकाभंगकरके जिनाज्ञाकी उत्थापना करने वाले महान् दोषी बनतेहैं।
११. फिरभी देखिये-सर्वज्ञ भगवान् निष्फल क्रिया का उपदेश कभी नहीं देते तो भी ढूंढिये मुहपत्ति को हमेशा मुंहपर बांधी रखतेहैं सो निष्फल क्रियाहै क्योंकि जब साधू दिनमें यारात्रि में मौनपने काउसग्ग ध्यानकरे अथवा महीना दो महीना वर्ष छः महीना काउसग्ग ध्यानमें खडारहे उस वक्त बोलनेका सर्वथा त्यागहोताहै तबभी हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेका ढूंढिये कहतेहैं सो निष्फल क्रियाकी प्ररूपणा करतेहैं और उपासकदशा, अंतगडदशा, अनुत्तरोववाई, उत्तराध्ययन, निशीथादि आगमोमें मुंहपत्ति शब्द देखकर उसका भावार्थ समझे बिना मुंहपत्ति शब्द से हमेशा मुंहपर बांधनका अर्थ करते हैं सो सर्वज्ञ शासनके विरुद्ध होनेसे उत्सूत्र प्ररूपणा ही है।
(एक मायाचारी की कुतर्क देखो) १२. कोई २ ढूंढिये ऐसी भी कुर्तक करतेहैं कि सूत्रोंमें मुंहपत्ति चलीहै परंतु बांधने का नहीं लिखा वैसेही हाथमें रखनाभी नहीं लिखा, यहभी ढूंढियोंका कहना प्रत्यक्ष झूठहै. क्योंकि देखो प्रथम तो शक्रंद्रके