Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 28
________________ २६ . जाहिर उद्घोषणा नं० २. ६. वर्षा चौमासेमें थूककी गोली मुंहपत्ति रात्रिमें मुंहपरसे अ. लग रखते हैं, उसमें नीलण-फुलणकी उत्पत्ति होनेसे अनंत जीवोंकी हिंसाका दोष लगता है। ७. थूककी गीली मुंहपत्तिको हर समय मुंहपर बांधी रखनेसे मुंह झूठा रहताहै, झूठे मुंहसे सूत्र पढतेहैं, व्याख्यान बांचतेहैं यहभी ज्ञानावर्णीय कर्म बंध का हेतुहै। ८. बादीवालेको व्याख्यान बांचते समय मुहमसे बहुत थूक उडताहै, इसलिये मुंहपत्तिके अंदर कपड़े का दूसरा टुकड़ा ( छोटी मुं. हपत्ति ) रखनेकी विटंबना करनी पड़तीहै। ९ मौन रहने परभी हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेसे बाल चेष्टा जैसी निष्फल क्रिया होनेका दोष लगताहै। १०, मुंहपर मुंहपत्ति बांधी रखनेसे नाक कान आंख ललाट म. स्तक वगैरह छोटे २ स्थानोंपर कोई सूक्ष्मजीव या सचित्त रजादि गिरजावे तो मुंहपत्तिसे उसकी प्रमार्जना नहीं होसकती तथा छींक करते समय और दुर्गधिकी जगह मुंहपत्तिसे नाककी यत्ना भी नहीं होसकती यह अधूरी क्रियाका दोष लगताहै। ११. ढूंढिये साधु दवाई लेनेके समय या थूकनेके समय मुंहपत्ति को बार बार उंची नीची करके नाटकके परदेकी तरह मुंहपत्तिकी बड़ी विटंबना करते हैं। १२. होठोंके उपर हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेसे बोलते समय, छींक-उवासी-डकार-खांसी करते समय मुंहके श्वासोश्वास द्वारा पेटमें से दुर्गधयुक्त अशुद्ध पुद्गल बाहिर निकलतेहैं, वह सब मुंहपत्ति क चिपकजातेहैं और पीछेही पेटमें जाते हैं, जिससे पेटमें रोगकी उत्पत्ति होतीहै तथा मुंहमें दुर्गंध होतीहै इसलिये अनुभवी वैद्य और डाक्टर लोग हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेमें अनेक नुकसान बतलातेहैं। १३. विपाक सूत्रमें तथा ओघनियुक्ति आदि शास्त्रोंमें कभी दुर्गधिकी जगह पर या उपाश्रयकी प्रमार्जना करनेके समय मुंहपत्तिको नाक-मुंह दोनोंके उपर थोडीदेर बांधनेका कहाहै, जिसपरभी ढूंढिये नाकपर नहीं बांधते यहभी सूत्रकी आशा लोपन करनेका दोष लगताहै। - १४. एकवेत चारअंगुल ( १६ अंगुल ) समचौरस या अपने २ मुंह प्रमाणे समचौरस मुंहपत्ति रखनेकी मर्यादाहै परंतु ढूंढिये एक कपहेकी लंबी चीरी लेकर लपेट कर बांधतेहें यहभी शास्त्र विरुद्धहै।

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