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' जाहिर उद्घोषणा नं० २. और होठोंको साफ करना, रंग लगाना या बडेहोठको कटवाकर सुधराना इत्यादि कार्यकरने वालेको दोष बतलायाहै, यह बात खुला मुंह हो तब शोभाके लिये की जातीहै, परंतु बांधा हुआ हो तो नहीं, यदि खुला मुंह हो तो लोकलज्जासेभी साधु होठोंको रंगना वगैरह दोष न लगा सके परंतु बंधाहुआ होतो गुप्तदोष लगा सकताहै, इसलिये हमेशा मुं. हपत्ति बांधी रखनसे निशीथसूत्रकी आज्ञा उत्थापन होतीहै और दांत होठ रंगने वगैरह का गुप्तदोष लगानेकी मायाचारी भी कर सकताहै । ___३२. भाषा बोलनेके लिये पुद्गल ग्रहण करने तथा भाषा बोल नी और आगेबोलनेमें आवे, यह सब भाषावर्गणा कहीजातीहै, “पन्नवणा" सूत्रमें इस भाषा वर्गणामें नियमा शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष यह चार स्पर्श बतलायेहैं, परंतु भाषा बोलेबाद गुरु (भारी) वगैरह आठस्पर्श होनेका नहीं बताया, जिसपरभी ढूंढियेलोग " पनवणा" सूत्रके नाम से भाषा वर्गणामें पाठस्पर्श होनेका कहकर वायुकायके जीवोंकी हानि करनेका ठहरातेह, यहभी सर्वथा सूत्र विरुद्धहै। ____३३. उववाई, भगवती, शाताजी आदिसूत्रोंमे श्रावकोंको दुपट्टे का उत्तरासन रखनेका जगह २ अधिकार आयाहै, यह उत्तरासन ब्राझणोंकी जनोईकी तरह रखा जाताहै, कभी काम पडे तब उसका छेडा मुंहके आगे रख सकतेहैं, उससे नाक मुंह दोनोंकी यत्ना होतीहै यह बात प्रत्यक्ष अनुभवसे सिद्ध है, जिसपरभी ढूंढियेलोग उत्तरासनका अर्थ मुखकोशकी तरह मुंह बांधना करतेहैं, यहभी सूत्र विरुद्ध होनेसे उत्सूत्र प्ररूपणाहीहै।
३४. जब डाक्टर लोग चीराफाडीका काम करतेहैं तब दुर्गधिका और राज्य युद्ध में जहरी धुंआका बचाव करनेके लिये नाक-मुंह दोनों ढक लेते हैं तथा विवाह शादी, राजदरबार, जाहिर सभा वगैरहमें कई लोग अपने मुंहके आगे उत्तरासनका छेडा या रुमाल आदि रखतेहैं, यह श्रेष्ट व्यवहारहै, परंतु इन बातोसे नाक खुला रखकर अकेला मुंह बांधा रखनेका साबित नहीं होसकता, जिसपरंभी ढूंढियेलोग भोलेजीवोंको उपरकी बातें बतलाकर हमेशा मुंह बांधनेका ठहरातेहैं, यहभी प्रत्यक्ष झूठा मायाचारीका प्रपंचहै।
३५. जिनेश्वर भगवान् ने मुंहके आगे घनादि रखकर उपयोग से बोलने वाले की भाषा को निर्दोष कहाहै और इंडिये इस बात के