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जाहिर उद्घोषणा नं० २. ----- का हेतुरूप अज्ञान रिवाज ढूंढियोंको त्याग करना योग्यहै और संवेगी साधुओंकी तरह सूत्रोंकी आज्ञा मुजब झोलीके उपर पडले ढकनेका अंगीकार करनेसे गृहस्थोंके घरोंमें सब पात्रे नीचे रखनेकी जरूरत नहीं पडती उससे ऊपरके दोषोंकाभी बचाव होताहै, इसलिये झूठेहठ की अचान रूढिको छोडकर सत्य बात ग्रहण करनेमेही आत्म हितहै।
४५. रात्रि व शाम सवेर सूर्य की गरमीके अभाव में सूक्ष्म सचित्त जलकी वर्षा हमेशा होतीहै ऐसा भगवती सूत्रके प्रथम शतकके छठे उद्देशमें कहाहै इसलिये उसकी दयाके लिये साधुको तथा पोषध आदि व्रतवाले श्रावकोंको रात्रिमें व सवेर ऋतु भेदसे वर्षा कालमें छ घडीतक, शीत कालमें ४ घडीतक, उष्ण कालमें दो घडीतक दिनचढे तबतक और शामको उतना दिन बाकी रहे तबसे साधुको खुले अंग. मकानसे बाहिर जाना योग्य नहीं है, कभी कारण वश जाना पडेतो कंबल ओढकर जाना चाहिये. इसी कारणले भगवतीजी, आचारांगजी, प्रश्नव्याकरण आदि सूत्रों में जगह २ साधु को कंबल रखनेका अधिकार मायाहै । ईढियों को इस बातका पूरा २ ज्ञान नहींहै इसलिये रात्रि व शाम सवेर ओढनेकेलिये कंबल नहींरखते, यहभी अपकायकी हिंसाकाहेतु, त्यागकर संवेगी साधुनोंकी तरह कंबल रखना योग्य है।
४६. यह कंवल रखनेका नियम सर्व तीर्थकर महाराजोंके शासनमें सब क्षेत्रों में हमेशा कायम रहनेके लियेही तीर्थकर भगवान् की दीक्षा समय इन्द्र महाराज बहु मूल्य रत्न कंबल भगवान् के डावे बंधेपर रखतेहैं यहबात जैनशास्त्रों में प्रसिद्धहीहै, इसलिये ढूंढियोंको यदि सच्चे जैनी बननेकी इच्छा हो तो अपना अज्ञान रिवाजको त्याग कर डावे बंधेपर कंबल रखने वगैरहकी सत्य बातें अंगीकार करनी योग्यहैं। दूसरी बात यहभीहै कि साधुके खंधेपर कंबली हो तो आहार आदिके लिये साधु गया होवे वहांपर रास्तामें अकस्मात जोर से हवा चलनेलगे,वर्षा होने लगे तो शरीरको, वस्त्रको व आहार-पानी आदि को ढकनेके काममें आतीहै तथा मुंहके आगे आडी डालनेसे गौचरी बहोरते समय या छींक आदि करते समय नाक मुंह दोनों की यत्ना होती है और बैठने के लिये आसनके काममेंभी आतीहै अन्यभी बहुत फायदे होतेहैं इसलिये खंधेपर कंबल नहीं रखनेवाले अनादि कालकी शासन मर्यादाका उल्लंघन करने के दोषी ठहरतेहैं ।