Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 71
________________ • जाहिर उद्घोषणा नं० ३. व्याख्यान देना व प्रतिक्रमण आदिका उच्चारण करने की सूत्रों में मनाई कीहै । और ऐसी वस्तु पडी हो वहांपर कोईभी समझदार भोजन नहीं करतेयह प्रसिद्ध बातहै इसलिये रजस्वलाकीभी अशुद्धि मानना योग्यहै। ___७६. रजस्वलाकी तरह जन्म-मरण आदिके सूतकमेंभी नित्य नियमके कार्य श्रावक-श्राविकाओंको मौन होकर मनमेंही करने चाहिये परंतुधर्मशास्त्र, नवकरवाली, आनुपूर्वी या नवपद-चौवीशीके गट्टे-फो. टो-यंत्र आदि धार्मिक वस्तुओंको छूना, हाथ लगाना योग्य नहींहै । और साधु-साध्वियोंको पुत्रके जन्ममें १० रोज, पुत्रीके जन्ममें ११ रोज, व मृत्यु होने वाले घरमें १२ रोजतक उनके घरका आहार-पानी नहीं लेना चाहिये । तथा प्रसूतवतीके लिये बनाये हुए लड्डु आदिभी लेना योग्य नहींहै। . ७७. यदि कोई शंका करेगा कि रजस्वला व जन्म-मरणमें मुनिको दान देनेकी और शास्त्र पढनेकी मनाई करनेमें कुछ फायदा नहीं है, किंतु अंतराय पडती है, यह भी अनसमझ की बात है, क्योंके देखो जिस तरह अशुद्ध जगहमें, मलीन परिणामोंसे और शरीर की व वस्त्रकी अशुद्धिसे यदि उत्तम मंत्रका जाप किया जावेतो उससे कार्य सिद्धि कभी नहीं होती और अनेक तरहके विघ्न ( अनर्थ) खडे होतेहैं । तथा शाम-सवेरे-मध्यान मध्यरात्रि, आसोज चैत्रकी असज्झाई, महामारी, चंद्र-सूर्यका ग्रहण, राजाकी मृत्यु, उत्पात, भूमिकंप, युद्ध, अकालवर्षा, गाज, बीज इत्यादि कारणों में सूत्रपढे, वाचना देवेतो बुद्धिकी मलीनता, विघ्नोंकी उत्पत्ति व शानावर्णीय कर्मोंका बंध और जिनाशाकी विराधनासे संसार बढनेका बडा अनर्थ होताहै, इसलिये ऐसे कारणों में सूत्र पढनेकी मनाईकीहै, उससे अंतराय नहीं बंधता किंतु भगवान्की वाणीका बहुमान भक्ति पूर्वक विनय होताहै जिससे ज्ञानावर्णीय काँका नाश होकर शुद्ध ज्ञानकी प्राप्तिसे अनेक लाभ होते हैं । उसी प्रकार रजस्वला व जन्म-मरणकी अशुद्धि में मोक्ष की प्राप्ति करने वाले अतीव उत्तम मंत्ररूप शास्त्र पाठोंका उच्चारण करनेसे परम उत्तम सवेश भगवानकी वाणीकी अवज्ञा होती है, उससे अनेक दोषआतेहैं इस लिये रजस्वला व जन्म-मरणादिके सूतकमें नवकार आदि किसीभी सूत्र पाठका उच्चारण करना योग्य नहींहै । और पहिलेके शूरवीर मुनिमहाराज स्मशान भूमिमें मौनपने कायोत्सर्ग ध्यानमें खड़े रहते परंतु

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