Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 70
________________ ६८ जाहिर उद्घोषणा न० ३. .. इसलिये ऐसे रोगोंमें गृहस्थलोग ढूंढियोंकी रजस्वला साध्वी आदि मलीन स्त्रियोंका परहेज रखने के लिय अपने घरोके दरवाजे बंध रखते हैं यह प्रसिद्ध ही है । और गूगडेवाली अपनी स्त्री के साथ गृहस्थोंको काम-भोगका परहेज नहीं होता परंतु रजस्वला स्त्रीके साथ चाररोज तक काम भोगका सर्वथा परहेज होता है, जिसपर भी यदि कोई अज्ञान वश रजस्वलाके साथ काम-भोग करे तो उससे धर्म कर्म कुलमर्यादा, लक्ष्मी व संप शांति आदिकी हानि करने वाली दुष्ट संतती पैदा होती है। रजस्वला अशुद्ध स्त्रीक कर्तव्यों में अंगचेष्टामें व मनके विचार वगैरह में भी अनेक तरहका अंतर रहताहै । रजस्वलाके पालन करने योग्य नियम और शुद्धिकी मर्यादा का विधान धर्मशास्त्रों में, वैद्यक शास्त्रों में, तशा सर्व उत्तम जातिवाले पढेलिखे समझदार लोगोंमें प्रसिद्धहीहै इसलिये गूगडेकी तरह रजस्वलाकी अशुद्धिका परहेज नहीं रखनेवाले ढूंढिये और तेरहापंथियोंकी बडीभूलहै। ___७४. जिसप्रकार किसी स्त्रीको प्रतिक्रमण, स्तोत्रआदिका स्मरण करनेका हमेशा नियम होवे तो वह रजस्वलाके समय मनमें अपना नित्य कर्तव्य कर परंतु सूत्र का पाठ उच्चारण न करे जिसपरभी यदि कोई अनसमझ नवकार आदिका सूत्रपाठ उच्चारण करे तो ज्ञानावर्णीय कर्म बंधे । इसीतरह रजस्वलास्त्री अपने हाथसे साधुको आहार आदि भी न दे किंतु दूसरे किसीको बुलवाकर उनको उनके हाथसे दिलावे, आप भावना भावे । यदि ऐसी दशामें कोई भूलसेभी अपने हाथोंसे साधुको आहार आदि देवे तो उससे शुद्ध धर्म कार्यों में विप्रभूत साधुकी बुद्धि खराब होने वगैरह अनेक अनर्थ होते हैं, इसलिये ऐसा करना योग्य नहीं है। . - ७५. यदि कोई शंका करेगा कि पेट में खून भरा हुआ है वही रजस्वलावस्थामें बाहर निकलताहै, उसमें कोई दोषनहीं है, यहभी अनसमझकी बातहै क्योंकि पेट में विष्टा-पैशाब-हाड-मांस आदि भरे हुए हैं परंतु तेजस-कारमण शरीरके संयोगसे शरीरके अंदर होनेसे विकार भाव वाले नहींहोते उससे उनकी अशुद्धि नहीं मानी गई और शरीरके बाहर निकलनेपर हवाके स्पर्श से विकार भाववाले होतेहैं जिससे उनकी अशुद्धि मानी गईहै। उससे हाड, मांस, विष्टा, खून वगै. रह जिस जगह पर गिरे हों उस जगह सूत्र पढना, स्वाध्याय करना,

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