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जाहिर उद्घोषणा नं० ३. अज्ञानदशा; द्वेषबुद्धि से आजतक दंडीर कहाहोवे या लिखाहोवे उसका शुद्धभावसे प्रायश्चित्त लेना चाहिये ।
११६. यदि ढूंढिये कहेंगे कि दीक्षालते समय सब साधुओंको दंडा रखने का सूत्रों में नहीं लिखा इसलिये रखना योग्य नहीं है, यहभी अनसमझकी बात है क्योकि देखो संत्थारा, कंबल, पादपुंछनक, गांच्छा, चौलपट्ट, चद्दर, पुस्तक वगैरह सब तरहके उपकरण दीक्षालेते समय ग्रहण करनेका ढूंढियों केमानेहुए सूत्रोंमें किसीजगह नहीलिखा तोभी इन उपकरणों के नाम सूत्रों में बतलाये, उससे सब साधुरखतेहैं, उसीतरह उपरके उपकरणोंक साथ दंडाभी सूत्रोंमें बतलायाहै इसलिये रखना योग्यहै, जिसपरभी ऐसी २. कुयुक्तियें करके निषेध करनेवाले ढूंढिये प्रत्यक्ष झूठा हट करते हैं ।
११७. यदि ढूंढिये कहेंगे कि कभी कीचड़ खाड़ आदि कारण पडे तब दंडा रखना चाहिये परंतु बिना कारण हमेशा रखना योग्य नहीं है यहभी अनसमझकी बात है क्योंकि सर्वज्ञ शासनमें सबकाल संबंधी सर्व जीवों केलिये व्यवस्था होनेसे 'इरियावही' करने में, तथा 'अन्नत्थ ऊससिएणं' के पाठमें तथा व्रत पञ्चक्खाणा के पाठों में बहुत तरहके आगार (कारण) रखते हैं वह सबकारण हमेशा सबके लिये नहींबनते किसीके कभी कामपडताहै तोभी वह सब आगारोंके पाठ सबको हमेशा बोलने पड़ते हैं। इसीतरह से दडाभीशरीर व संयमका रक्षक होनेसे सबको हमेशा रखना चाहिये । और खास ढूंढियोंकही छपवाये निशीथ सूत्रके पृष्ठ ८ में शरीर के माप प्रमाणे लाठी रखने का बतलाया है तथा 'दंडी दंभ दर्पण' के पृष्ठ ९९ वें में दंडा का कान तक लंबा प्रमाण बतलाया है। दंडा और लाठी इन दोनों शब्दों में तत्व दृष्टसे कोई विशेष भेद नहीं है इसलिये व्यवहार में दोनोंको दंडा कहतेहैं उपरमें बतलाये हुए सूत्रों के पाठोंमें दोनों तरहके पाठ मौजूद हैं इसलिये कान तक लंबा दंडा रखना कहां लिखाहै ऐसी कुतर्क करना व्यर्थ है। और कान तक लंबा दंडा रखने वाले संवेगी साधुओंकी निंदा करनेवाले सब ढूंढियों की बड़ी भूल है।
११८. ढूंढिये कहतेहैं कि प्रश्न व्याकरण सूबमें पंचम संवर द्वारमें साधुके १४ उपकरण बतलायेहैं उसमें मूलपाठमें तथा टीकामेभी दंडा रखनेका नहीं बतलाया इसलिये रखना योग्यनहींहै, यहभी अनसमझको बातहै क्योंकि इन्हीं प्रश्नव्याकरण सूत्रमें तीसरे संवर द्वारमें “ पीढ