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- जाहिर उद्घोषणा नं० ३. फलग-सेजा-संस्थार ग-वत्थ पाय कंबल-डंडग-रयहरण-निसेज-चोलपट्टय मुहपोत्तिय-पायधुंछगाइ भायण अंडोवहि उवगरणं" इस मूल पाठमें तथा " पीठफलक-शय्या-सांस्तारक-वस्त्र-पात्र-कंबल-दंडक-रजोहरण-निषद्याचोलपट्टक-मुखयोतिका-पादपोंछनादि भाजन भांडोपध्युपकरणं" इस टीकाके पाठमें ओघा मुंहपत्ति आदि उपकरणों के साथही दंडाभी बतला. दियाहै जिससे पंचम संवर द्वारमें दूसरी बार न बतलावें तोभी कोई दोषनहीं है इसलिए प्रश्नव्याकरण सूत्रके नामसे या इनसूत्रकी टीकाके नाम से दंडा रखनेका निषेध करने वाले मायाचारी सहित मिथ्याभाषी समझ ने चाहिये । और १४ उपकरण रखनेका ढूंढिये कहतेहैं परंतु १४ उपकरणोंका पूरा २ अर्थ नहीं समझते व गौचरीकी झोलीके उपर पल्ले, कंबल आदि १४ उपकरण पूरे २ रखतेभी नहीं इसलिये ढूंढिये साधु-साध्वियों का वेष, उपकरण, कर्तव्य, श्रद्धा और प्ररूपणाभी सूत्र विरुद्धहै, इसका विशेष खुलासा मूखाग्रंथमें लिखाहै । तथा पादपुंछनक आदि बहुत तरह के उपकरण साधुके काममें आनेवाले साधु रखसकतेहै इसलिये १४ उपकरणोंका सामान्यपाठ देखकर १४ उपकरणास ज्याद उपकरणों का निषेध कभी नहीं होसकता।
(खान निवेदन) ११९. जिनाशानुसार सत्य मार्गपर चलनेकी चाहना रखनेवाले सब ढूंढिये और तरहापंथियोंको मेराइतनाही कहनाहै कि हमेशा मुंहपत्ति बांधनेमें ३६ दोषआतेहैं किसीभी जैनशास्त्र में हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेका लिखाभी नहीं ( इसवातका थोडासा खुलासा उपरमें लिखा है, विशेष मूल ग्रंथमें आगे देखलेना) इसलिये व्यर्थ शास्त्रों कीव कुयुक्तियोंकी झूठी २ आडलेना छोडकर इस खोटी कुरीतिकी अंघरूढिको जल्दीसे त्याग करके सत्यबात ग्रहण करो। और चौथमलजी ने आज्ञा देकर अपने शिष्य शंकरलालजीके पास मुखवस्त्रिका निर्णय में, प्यारचंद्रजी पास गुरुगुणमहीमा में, कुंदनमलजीने मिथ्यात्व निकंदन भाष्कर में, अमोलक ऋपिजीने जैनतत्वप्रकाश में, पार्वतीजीने शानदीपिका व सत्यार्थ चंद्रोदय जैन, आदिमें जिस २ ने हमेशा मुंहपत्ति बांधनेका ठहरानेकी उत्सूत्र प्ररूपणा की हो, करवाई हो या बांधनेमें जिनामाकी श्रद्धा रखी हो, बांधी हो, बंधवायी हो उन सबको यह ग्रंथ पूरा २ पढकर अपनी भूलकी आलोयणा लेकर आत्मको शुद्ध करना योग्य है । यदि