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जाहिर उदूघोषणा नं० ३.
हो, पासमें रहतेहों उन साधुके गर्मी में या घर्ष में ओढनेरूप छत्र (वस्त्र), मात्रक, दंडा व फोडा फुनसी गडगुंबडादिको साफ करनेके लिये किसी गृहस्थ के पाससे लाये हुए चाकू केंची आदि चर्मच्छेदक वगैरेह वस्तुओमें से कोई भी वस्तु उन साधुकी आज्ञा लिये बिना और देखकर पूजे प्रमार्जे बिना लेना कल्पेनहीं, इसलिये उन साधुकी आज्ञा लेकर उस वस्तुको पूज प्रमार्जकर लेना कल्पे ।
१०५. देखो उपरके पाठमें दीक्षा लेने वाले साधुके दंडा आदि वस्तु कही है इसीसे सिद्ध होता है कि जिसप्रकार पैशाब करनेका मात्रक आदि साधुके हमेशा काममें आनेवाली उपयोगी वस्तु, उसी प्रकार दंडाभी आहर, विहार निहार आदि कार्योंमें बाहर जानेके लिये हमेशा उपयोग में आनेवाला होनेसे सबसाधुओंको रखना पडता है उस का निषेध करना बडी भूल है ।
दशवैकालिक सूत्रके चौथे अध्ययन में दंडा संबंधी नीचे
१०६. मुजब पाठ :
" से भिक्खू वा भिक्खूणी वा संजय - विरय-पडिद्दय-पञ्चकखाय-पा पकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुते वा जागरमामाणे वा से कीडं वा पयंगं वा कुंथुं वा पिपीलिअं वा इत्थसि वा पायंसिवा बाहुसि वा उदरंसि वा सीसंसि वा वत्थसि वा पडिग्गहंसि वा कंबलसि वा पायपुछणंसि वा रयहरणंसि वा गोच्छसि वा उडगंसिवा दंडगंसि वा पीढगंसि वा फलगंसि वा सेज्जगंसि वा संत्थार गंसि वा तप्पगारेउवगरणजाए तओसंजयामेव पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिअ पमज्जिअ एंगतमवणेज्जा णोणसंघायमावज्जेज्जा ॥ ६ ॥,,
१०७. उपरके पाठ में संयमवान, तपस्या करने में आशक्त व व्रत पञ्चक्खाणसे पापकर्मको दूर करने वाले ऐसे साधु साध्वी दिनमें वा रात्रिमें अकेले वा मनुष्योंकी पर्षदामें सोतेहुए वा जागृत दशामें की - डे, पतंगीये, कुंथुये, कीडीयें, आदि त्रसजीव अपने हाथों में, पैरोंमें, बाहुमें, साथलमें, पेट में, मस्तक में, या वस्त्रमें, पात्र में, कंबल में, पादपुछनक ( दंडासन ) में, रजोहरणमें, गुच्छामें, जलकेभाजनमें, दंडामें, पाटीयेमें, चौकी और संत्थारा आदि अन्यभी साधु साध्वी के उपयोगी उपकरणोंमें किसी प्रकारके त्रस जीव चढे होंवें उन्होंको पूज-प्रमार्जनकर यत्नापूर्वक एकांत जगह में परिठवें ( रख दें ) परंतु पीडा करें नहीं ।