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जाहिर उद्घोषणा नं० ३.
करना चाहिये कि यदि दंडा भय करनेवाला क्रोधमूर्त्तिका हेतु होवे तो ढूंढियों के वृद्ध साधु-साध्वियों कोभी कभी नहीं रखना चाहिये परंतु रखते हैं इसलिये ऐसी २ कुयुक्ति करके साधुओं को दंडा रखनेका निषेध करना बड़ी भूलहै ।
११४ (दंडा हमेशा साथमें रखनेंमें १५ गुणोंकी प्राप्ति)
१- भगवती, आचारांग, प्रश्नव्याकरण, निशीथ, दर्शवेकालिक, ओघ नियुक्ति, प्रवचन सारोद्धार आदि अनेक शास्त्रों में तीर्थकर गणधर पूर्वधरादि महाराजोंने साधु-साध्वियों को दंडा रखनेका बतलाया है इसलिये दंडा रखने वाले मूल आगमोंकी तथा तीर्थकर गणधरादि महाराजों की आज्ञा के आराधक होते हैं ।
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६ - जिसप्रकार रजोहरण व मुंहपत्ति सर्व साधु-साध्वी हमेशा पास में रखते हैं, जिससे जब काम पडे तब पूजन प्रमार्जन आदिका काम लिया जाता है । उसी प्रकार सब साधु-साध्वियों को ग्रांमांतर व गुरु वंदनादि के लिये बाहर जाते समय या गृहस्थों के घरोंमें आहार- पानी वगैरहके लिये जाते समय दंडाभी हमेशा साथमें रखना चाहिये, जिससे कभी सर्प आदि सामने आजानेपर दंडेसे अलग हटाकर संयमरक्षा, तथा शरीर रक्षाका लाभ लेसके और १-२ माल (मजले) चढने उतरने में भी दंडाका सहारा रहता है । अन्यथा कभी सीढी चढते उतरते पैर चुक जावे तो हाथ, पैर, पात्र आदिका नुकसान होजावे, उस समयभीदंडा बडा सहारा देकर सबका बचाव करता है ।
३ - गृहस्थों के घरों में आहार लेते समय दंडाके सहारेसे आहारके झोली - पात्रें सब अधर रखकर आहार लिया जाताहै, परंतु दंडा नहीं रखने वाले ढूंढिये और तेरापंथी साधु-साध्वी घर २ में जमीन के उपर झोली - पात्र रखदेते हैं उससे जमीनपरके कीडी, कुंथुये आदि सूक्ष्म-बदर अनेक जीवोंकी हानि होती है । तथा अन्य भी जाहिर उद्घोषणा नंबर दूसरे के पृष्ट ४८ वें में बतलाये मुजब अनेक दोष आते हैं ।
४ - रास्ता में चलते समय कभी अकस्मात कांटा या ठोकर लगने पर या खाड आदिमें पैर चुक जानेपर नीचे गिरने लगें उससमय दंडा के आधार से शरीर, वल, पात्र आदिका बचाव होता है अन्यथा दंडा के अभाव से नीचे गिर जायें तो अनेकजीवोंका नाश होनेसे संयमकी