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जाहिर उद्घोषणा नं० ३
बात अवश्य कहूंगा कि इन लोगों का रात्रि में जल नहीं रखना यह जिस तरह अनुचित है, उसी तरह रखनाभी बुरा है क्योंकि वर्तमानिक इनका धोवण प्रायः जीवाकुल होता है, उसमें राखोडी डालनेसे उन जीवोंकी हानि होती है और रात्रिमें अन्य जीव फिर उत्पन्न होजाते हैं, हां त्रिफलों का जल, या गरम जलमें शामको चुना आदि ते वस्तु डालकर रखना चाहें तो रख सकते हैं उसमें रात्रिमें जीव उत्पन्न होसकते 1
५५. ढूंढिये कहते हैं कि एक एक साधुके लिये रात्रिमें कितना कितना जल रखना चाहिये, इसका कोई वजन प्रमाण सूत्रमें नहींहै इसलिये रखना योग्य नहीं है, यहभी अनसमझकी बातहै, क्योंकि देखो जिसप्रकार दिनभर में साधुको कितने घूंट या कितनी वार जल पीना, इस बात का वजन प्रमाण सूत्र में नहींहै तो फिर रात्रिमें जलरखनेका वजनका प्रमाण मागना कितनी भारी भूलहै. तात्पर्य यह है कि साधुको जितने जलसे अपनी तृषा शांत होजावे और शांतिसे धर्मसाधन हो स के, उतना जलपीना चाहिये. बस यही सूत्रकी आज्ञा है । इसी तरहसे जितने जलसे व्यवहार दृष्टिसे बाह्य शुचि होसके उतना जल रात्रि में उपयोग पूर्वक यत्नासे रखनेकी ऊपर में बतलाये हुए पाठके अनुसार निशथिसूत्रकी आज्ञा समझ लेनाचाहिये. इसलिये ऐसी २ कुयुक्तियों से अनुचित बातका आग्रह करके शासनकी अवज्ञाका हेतु करना उचित नहीं है ।
५६. ढूंढिये कहते हैं कि रात्रिमें जल रखने परभी कभी भूलसे अकस्मात दुलजावे या थोडा जल होवे और दस्त बहुत लगें तो क्या करना चाहिये ? ढूंढियाँके इस कथनका आशय ऐसा है कि जल दुलनेपर या बहुत दस्त लगने से अशुचि रहना पड़ता है यहभी ढूंढियोंकी अन समझकी बात है क्योंकि देखो हजारों ढूंढिये साधु-साध्वी और संवेगी साधु-साध्वी हमेशा रोजीना आहार पानी लाते हैं परंतु सब दुलकर सब पात्रे खाली होगये वैसा आजतक देखने में और सुननेमें कभी नहीं आया हां इतनी बात जरूर है कि कभी भूलसे कोई वस्तु दुल जावे तो कुछ दुलती है और कुछ बाकी रहती भी है, यह प्रत्यक्ष प्रमाणहै और जिसप्रकार दिनमें जितने आहार पानीकी साधुको जरूरत हो उतना ले आता है, उसी प्रकार यदि रोगादि कारण से बहुत दस्त लगनेकी संभावना हो तो रात्रिके लिये अधिक जल रखलेताहै, इसलिये दुलजाने