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जाहिर उद्घोषणा नं० ३. कभी बन जावे तो उसकी तरह सब ब्राह्मण समाज हमेशाही जलबिना शौच करनेका कभी स्वीकार नहीं कर सकता और अटवी, युद्ध, दुष्काल वगैरह आफत कालमें किसीने अपने प्राण बचाने के लिये मरेहुए मनुष्यका मांस खाकर व खून पीकर अपना जी बचालिया था किसीने कुत्ते, कौवे आदिको खा लिये तो उनकी तरह सब लोग मनुप्योंको खानेवाले नहीं बन सकते, इसलिये ऐसा कल्पित एक ब्राह्मण का दृष्टांत बतला कर ढूंढिये सामाजके सर्व साघुओंको निसुग बना कर रात्रिमें जल रखने का हमेशाके लिये निषेध करना बड़ीभूलहै ।
६४. फिरभी देखिये उपर के दृष्टांत में बतलाये मुजब ब्राह्मणको कभी एकबार ऐसा अनुचित काम पडजावे तो फिर जन्मभर ऐसे जंगलके रास्ते अपने साथमें जललिये बिना कभी न जावे परंतु सैकडों ढूंढिये साधु साध्वियों को रात्रि में दस्त होनेका हजारों बार काम पड चुकाहै व पडताभी है जिसपरभी ऐसा दृष्टांत बतला कर रात्रिमें जल रखनेका निषेध करना यही बडी अनसमझहै और ऊपरके दृष्टांत मुजब ढूंढिये बिना जल दस्तहोने पर अपना काम चलानेका मान्य करते है जिससे उस ब्राह्मणकी तरह जंगल जाकर कपडे से पूंछकर या बालकों की तरह रेतीमें गांड घिसणी करके जलसे शुचिकिये बिनाही अपने धर्मशास्त्रोंको हाथमे लेनेका ऊपरके दृष्टांत मुजब ढूंढिये मान्य करते हैं, इसी तरहसे कितनेक विहार करके दूसरे गांव जाते समय रास्तामें दस्तलग जावे तो वहांही जंगल जाकर जलसे शुचि किये बिनाही पुस्तक आदिको हाथ लगालेते हैं फिर गांवमें जाकर भक्त लोगोंकों धर्मका उपदेश देने लगते हैं और घर २ में आहार-पाणी के लिये फिरते हैं परंतु दस्तकी अशुचिकी जलसे शुचि करतेनहीं, यह कितनी भारी अनुचित प्रवृत्तिहै, ऐसे अनुचित व्यवहारका त्याग करनाहीश्रेय कारीहै।
(रात्रिमें जल न रखने में २१ दोषोंकी प्राप्ति)
६५. देखो रात्रिमें जल न रखनेसे दस्त लगनेपर अशुचि रहती है १, कभी कोई अशुचिके भयसे दस्त को दबाकर रोक लेवे तो रोगकी उत्पत्ति होतीहै २, दस्तकी व्याकुलतासे फजर होनेकी राह देखतेहुए सूर्योदय होतेही गृहस्थोंके घरमें जलके लिये भगना पडताह ३, कभी किसी अकेली स्त्रीके घरमैसे साधुको स्योदय होतेही जल लेकर निकलता देखकर किसी को रात्रिमें यहां रहनेकी शंका पडजावे ५, ऐसा