Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

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Page 67
________________ • जाहिर उद्घोषणा नं० ३. १५ लीबके पत्ते-सली व आदि शब्दसे त्रिफला, कडु, किरायता, लीव गीलोय, धमासो, कथेरमूल, केरडेके मूल, चित्रक, खेरसार, चंदन, चोपचीनी, रीगणी, रोहिणी, अफीम-संखीया आदि सब तरह के जहर, भस्मी (राख,) चुना, गुगल, अतिविष, एलिओ, कुआरपाठा, थोयर, आक, फटकड़ी इत्यादि यह सब अनाहार वस्तुओंके नाम बतलायेहैं। . ६९. इसी प्रकार जैनतत्वादर्श, श्राद्धविधि, प्रकरणमाला आदि में आहार व अनाहार की वस्तुओं के बहुत भेद बतलायेहैं । आहार की वस्तु लोगों के खाने पीने में आती हैं और स्वाद रहित अनाहार की वस्तु कभी रोगादिमें काम आतीहैं । आहार करनेका त्याग करने वालों को कभी रोगादि कारण से अनाहार वस्तु लेनी पडेतो आहार त्याग रूप व्रत भंगका दोष नहीं आता। अब विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये कि ऊपरकी सब वस्तु साधु श्रावकके-खाने पीने के काममें कभी नहीं आती किन्तु जो वस्तु जिसके योग्य होवे वोही वस्तु ग्रहण कर सकेगा परंतु सब नहीं । जैसे जलके भेदोंमें समुद्रका जल व शराब ( दारू ) ताडी आदि का नाम बतलायाहै और साधु-श्रावक जलको सब कोई पीतेहैं, परन्तु समुद्रका खारा जल व दारू और ताडी कोईभी साधुःश्रावक कमी नहीं पीसकता, जिसपरभी कोई अनसमझ ऊपर के लेख में दारू व ताबीचा नाम देखकर सब साधु श्रावकों को दारू पीने वाले मान ले तो उनकी पड़ी भारी अज्ञान दशाकी द्वेष वुद्धि व कुटिलता लमहानी चाहिये ! वैसेड़ी अनाहार वस्तु में रान, आक, पेशाब, थायर, सब तरह के विप आदि के नाम बतलाये हैं, यहसब किसी भी साधुःश्रावकके रात्रिम व दिगमें खाने पीने के काममें कभीनहीं आते या प्रत्यक्ष अनुभव सिद्ध जग जाहिर बात है । जिसपरभी ढूंढिये लोग प्रत्यक्ष द्वेष बुद्धिसे संवेगी साधुओंको पैशाब पीनेका झूठा कलंक लगाते हैं यह कितना भारी अधर्म है। देखो-जिसप्रकार राजा, बादशाह के राज्याभिषेक व विवाहशादी वगैरहके महोत्सवमें राजा बादशाहने मांस, मदिरा, मीठाई वगैरह सब तरह की भोजनकी सामग्री तैयार करवाकर सब शहरके ब्राह्मण, बनिये, क्षत्रीय, मुसल्मान आदि सब जातियोंको जीमनेका आमंत्रण देकर जिमाये, ऐसा किसी जगह का सामान्य लेख देखकर बनीये ब्राह्मण आदि सब जातिवालोंको मांस-मदिरा

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